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________________ woना है 210 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् षष्ठी दशा पदार्थान्वयः-अहावरा-इसके अनन्तर चउत्थी-चतुर्थी उवासग-उपासक पडिमा-प्रतिमा प्रतिपादन की है / जैसे-सव्व-धम्म-सर्व-धर्म-विषयक रुई-रुचि यावि भवति होती है / तस्स-उसके बहूइं-बहुत से सीलवय-शील-व्रत गुण-गुण-व्रत वेरमण-विरमण-व्रत पच्चक्खाण-प्रत्याख्यान और पोसहोववासाइं-पौषधोपवास आत्मा में सम्म-भली भाँति पट्टवियाई-प्रस्थापित किये भवंति-होते हैं णं-और से-वह सामाइयं-सामायिक और देसावगासियं-देशावकाशिक व्रत की सम्म-सम्यक् प्रकार से अणुपालित्ता-अनुपालना करने वाला भवति-होता है / से णं और वह फिर चउद्दसि-चतुर्दशी अट्ठमि-अष्टमी उदिट्ठ-अमावस्या और पुण्णमासिणीसु-पौर्णमासी आदि पर्व दिनों में पडिपुण्णं-प्रतिपूर्ण पोसह-पोषध-व्रत को सम्म-सम्यक् प्रकार से अणुपालित्ता-अनुपालन करने वाला भवति-होता है / किन्तु से-वह एगराइयं-एक रात्रि की उवासग-पडिम-उपासक-प्रतिमा को सम्म-अछा प्रकार से अणुपालित्ता-अनुपालन करने वाला नो भवति-नहीं होता है / यही चउत्थी-चौथी उवासग-पडिमा-उपासक-प्रतिमा ___मूलार्थ-अब चौथी उपासक-प्रतिमा कहते हैं / इस प्रतिमा वाले को सर्व-धर्म-विषयक रुचि होती है। उसके बहुत से शील, गुण, विरमण, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास व्रत अपने आत्मा में स्थापित किये होते हैं। वह सामायिक और देशावकाशिक व्रतों की आराधना उचित रीति से करता है, चतुर्दशी, अष्टमी, अमावास्या और पौर्णमासी,आदि पर्व दिनों में प्रतिपूर्ण पौषध-व्रत का पूर्णतया अनुपालन करता है / किन्तु 'एक रात्रि की' उपासक-प्रतिमा का सम्यग् आराधन नहीं करता / यही चतुर्थी उपासक-प्रतिमा है। टीका-इस सूत्र में चौथी प्रतिमा का विषय प्रतिपादन किया गया है / इस प्रतिमा वाला पहली, दूसरी और प्रतिमाओं के सब नियमों का विधि-पूर्वक पालन करता है / वह पर्व-दिनों मे प्रतिपूर्ण पौषध व्रत भी करने लग जाता है | किन्तु वह उपासक की एक रात्रि की कायोत्सर्ग अवस्था में ध्यान करने की-प्रतिज्ञा को सम्यक्तया पालन नहीं कर सकता है /
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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