________________ 4 - 208 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् षष्ठी दशा विरमण, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास व्रत अपने आत्मा में स्थापित किये होते हैं | वह सामायिक और देशावकाशिक व्रतों की आराधना उचित रीति से करता है / किन्तु चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पौर्णमासी आदि पर्व-दिनों में पौषधोपवास-व्रत की सम्यग् आराधना नहीं कर सकता / यही तीसरी उपासक-प्रतिमा है / टीका-इस सूत्र में तीसरी प्रतिमा का विषय कथन किया गया है / इस प्रतिमा में पूर्वोक्त गुण अच्छी प्रकार पालन किये जाते हैं / इसमें सामायिक और देशावकाशिक व्रत भी उचित रीति से अनुष्ठित होते हैं अर्थात् काल के काल (ठीक समय पर) इनकी सम्यक्तया आराधना की जाती है / अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि सामायिक और देशावकाशिक का अर्थ क्या है? उत्तर में कहा जाता है कि जिसके करने से राग और द्वेष शान्त हों तथा आत्मा को ज्ञान, दर्शन और चारित्र का लाभ हो उसी का नाम सामायिक व्रत है / सावध योग का दो करण और तीन योग से त्याग किया जाता है / सामायिक का पवित्र समय स्वाध्याय और धर्म-ध्यानादि में ही व्यतीत करना चाहिए / छठे दिगव्रत में दिशाओं के प्रमाण के लिए नियत समय में कुछ न्यूनता करना ही देशावकाशिक-व्रत कहलाता है / तीसरी प्रतिमा वाला उपासक यद्यपि सामाचिक और देशावकाशिक व्रतों की आराधना करता है किन्तु वह चतुर्दशी, अष्टमी, अमावास्या और पौर्णमासी आदि पर्यों में सम्यक्तया पौषध-व्रत की आराधना नहीं कर सकता / यहां यह प्रश्न उपस्थित होता है कि पौषध-व्रत किसे कहते हैं ? उत्तर में कहा जाता है कि जिन नियमों और धर्म-क्रियाओं के करने से धर्म-ध्यान में विशेष वृद्धि हो उनका नाम ही पौषध-व्रत है / पौषध-व्रत चार प्रकार का होता है / जैसे: 1. आहार–पौषध-एक देश या सर्व आहार के त्यागने से धर्म-ध्यान और संयम में समय व्यतीत करना / 2. शरीर-पौषध-शरीर के ऊपरी ममत्व का परित्याग करना और शरीर का . सत्कार न करना / 3. व्यापार–पौषध-व्यापार का परित्याग करना /