________________ षष्ठी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 207 अब सूत्रकार तीसरी उपासक-प्रतिमा का विषय कहते हैं: अहावरा तच्चा उवासग-पडिमा / सव्व-धम्म-रुई यावि भवति / / तस्स णं बहूई सीलवय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाई सम्म पट्टवियाई भवंति / से णं सामाइयं देसावगासियं सम्म अणुपालित्ता भवति / से णं चउदसि-अट्टमि-उदिठ्ठ-पुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं नो सम्म अणुपालित्ता भवति / तच्चा उवासग-पडिमा / / 3 / / अथापरा तृतीयोपासक-प्रतिमा / सर्व-धर्म-रुचिश्चापि भवति / तस्य नु बहवः शीलव्रत-गुण-विरमण-प्रत्याख्यान-पौषधोपवासाः सम्यक् प्रस्थापिता भवन्ति / स च सामायिक देशावकाशिकं सम्यगनुपालयिता भवति / स च चतुर्दश्यष्टम्युदिष्ट-पौर्णमासीषु प्रतिपूर्ण पोषधोपवासं नो सम्यगनुपालयिता भवति / तृतीयोपासक-प्रतिमा / / 3 / / पदार्थान्वयः-अहावरा-इसके अनन्तर तच्चा-तीसरी उवासग-पडिमाउपासक-प्रतिमा कहते हैं | सव्व-धम्म-सर्व-धर्म-विषयक रुई-रुचि भवति होती है य-और फिर तस्स-उसके बहूइं-बहुत सीलवय-शील-व्रत गुण-गुण-व्रत वेरमण-विरमण-व्रत पच्चक्खाण-प्रत्याख्यान पोसहोववासाइं-पौषधोपवास सम्म-सम्यक्तया आत्मा में पट्टवियाइं-स्थापित किये हुए भवंति हैं / किन्तु से-वह सामाइयं-सामायिक और देसावंगासियं-देशावकाशिक व्रत को भी सम्म-सम्यक्तया अणुपालित्ता-अनुपालन करता भवति-है, किन्तु से-वह चउदसि-चतुर्दशी अट्ठमि-अष्टमी उदिट्ठ-अमावास्या और पुण्णमासिणीसु-पौर्णमासी के दिन पडिपुण्णं-प्रतिपूर्ण पोसहोववासं-पौषधोपवास को सम्म-सम्यक्तया अणुपालित्ता-अनुपालन करने वाला नो भवति-नहीं होता / यही तच्चा-तृतीया उवासग-उपासक पडिमा-प्रतिमा है | मूलार्थ-अब तीसरी उपासक-प्रतिमा कहते हैं / इस प्रतिमा वाले को सर्व-धर्म-विषयक रुचि होती है / उसके बहुत से शीलव्रत, गुणव्रत,