________________ षष्ठी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 2055 पौषधतिथि–संविभागाख्यानि इति, व्रतानि-पञ्चाणुव्रतानि, गुणाइं-त्रीणि गुणव्रतानि, पोसहोववासाइं ति-पोषं वद्धिं धत्ते धारयतीति वा पौषधः-अष्टमी-चतुर्दशी पूर्णिमामावास्यादिपर्वदिनानुष्ठेयो व्रतविशेषस्तत्रोपवासः / अर्थात् पर्व के दिनो में पौषधोपवास करना / वह व्रत चार प्रकार का वर्णन किया गया है / आहार-पौषध, शरीर–पौषध, सत्कार-पौषध और ब्रह्मचर्य-पौषध / कहने का तात्पर्य यह है किस पहली प्रतिमा में आत्मा सम्यग्-दर्शन के अतिरिक्त अन्य कोई भी नियम धारण नहीं करता, नांही वह आत्मा उक्त गुणों में प्रविष्टि होता है | वह श्रावक के द्वादश व्रतों को सम्यक्तया पालन नहीं करता / किन्तु सम्यक्त्व का निरतिचार-पूर्वक पालन करता है, अर्थात् सम्यग-दर्शन का पालन विधि पूर्वक करता है / इस प्रतिमा वाला अवृत्ति-सम्यग्दृष्टि होता है / वह सम्यग्-दर्शन से विभूषित होने के कारण शुक्ल-पाक्षिक होता है / इस प्रतिमा का काल-मान एक मास है / इस प्रकार पहली दर्शन-प्रतिमा का वर्णन किया गया है / - अब सूत्रकार इसके अनन्तर दूसरी प्रतिमा का विषय वर्णन करते हैं: अहावरा दोच्चा उवासग-पडिमा, सव्व-धम्म-रुई यावि भवति / तस्स णं बहूई सीलवय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाई सम्मं पट्टवियाई भवंति / से णं सामाइयं देसावगासियं नो सम्म अणुंपालित्ता भवति / दोच्चा उवासग-पडिमा / / 2 / / - अथापरा द्वितीयोपासक-प्रतिमा, सर्व-धर्म-रुचिश्चापि भवति / तस्य नु बहवः शीलव्रत-गुण-विरमण-प्रत्याख्यान-पौषधोपवासाः सम्यक् प्रस्थापिता भवन्ति / स नु सामायिकं देशावकाशिकं नो सम्यगनुपालयिता भवति / द्वितीयोपासक-प्रतिमा / / 2 / / - पदार्थान्वयः-अहावरा-इसके अनन्तर दोच्चा-दूसरी उवासग-पडिमा-उपासक-प्रतिमा है / सव्व-धम्म-रुई यावि-सर्व-धर्म में रुचि भवति होती है / तस्स-वह बहूइं-बहुत सीलवय-शील-व्रत गुण-गुण-व्रत वेरमण-विरमण-व्रत पच्चक्खाण-प्रत्याख्यान-व्रत और पोसहोववासाइं-पौषधोपवास को सम्म-सम्यक् प्रकार पट्टवियाई भवंति-आत्मा में