________________ - / 200 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् षष्ठी दशा छंद-राग-मति-स्वच्छ राग में मति निविटे आवि-निविष्ट की हुई भवति-है से वह महिच्छे-उच्च इच्छाओं वाला भवइ-होता है जाव-यावत् उत्तर-गामिए-उत्तर दिशा के नेरइए-नरकों का अनुगामी होता है (अर्थात् किसी दुष्कर्म से यदि उसको नरक में जाना हो तो वह उत्तर दिशा के नरकों में जाता है / ) सुक्क-पक्खिए-शुक्ल-पाक्षिक आगमेस्साणं-आने वाले समय में सुलभ-बोहिए-सुलभ बोधिक कर्म के उपार्जन करने वाला भवइ-होता है यावि-'च' और 'अपि' शब्द परस्पर अपेक्षा या समुच्चय अर्थ में जान लेने चाहिएं से तं-यही किरिया-वादी-क्रिया-वादी होता है। ___ मूलार्थ-क्रिया-वादी कौन है ? गुरु उत्तर देते हैं कि जो आस्तिकवादी है, आस्तिक-प्रज्ञ है, आस्तिक-दृष्टि है, सम्यग-वादी है, मोक्ष-वादी है और परलोक-वादी है तथा जो यह मानता है कि यह लोक है, परलोक है, माता है, पिता है, अर्हन्त हैं, चक्रवर्ती हैं, बलदेव हैं, वासुदेव हैं, सुकृत और दुष्कृत कर्मों का फल वृत्ति विशेष है, शुभ कर्मों के शुभ फल होते हैं, अशुभ कर्मों के अशुभ फल होते हैं, जीव अपने पाप और पुण्य कर्मों के साथ ही परलोक में उत्पन्न होते हैं, यावत् नैरयिक, जीव हैं, देव हैं, मोक्ष है, उसको क्रियावादी कहते हैं / वह उक्त सब बातों का समर्थन करता है / इस प्रकार उसकी प्रज्ञा होती है, इस प्रकार उसकी दृष्टि है / स्वच्छन्द राग में उसकी बुद्धि विनिविष्ट होती है / वह उत्कट इच्छाओं वाला होता है / वह उत्तरगामी नैरयिक होता है | उसको शुक्ल-पाक्षिक कहते हैं और आगामी काल में वह सुलभ-बोधी हो जाता है / इसी को क्रिया-वादी कहते हैं / ___टीका-इस सूत्र में क्रिया-वाद का विषय वर्णन किया गया है / क्रियावाद आस्तिक-वाद को कहते हैं / उसको मानने वाला क्रिया-वादी या आस्तिक-वादी कहलाता है / आस्तिक-वादी उसको कहते हैं जो इस बात को मानता है कि जीवादि पदार्थ मृत्यु के अनन्तर पर-लोक जाते हैं, जैसे-"अस्ति परलोक-यायी जीवादि पदार्थ इति वदितुं शीलमस्येति-आस्तिक-वादी” यह आस्तिक-प्रज्ञ भी होता है, जैसे- अस्ति प्रज्ञा-विचारण बुद्धि-विकल्पो यस्य स आस्तिक-प्रज्ञः” अर्थात् जिसकी आस्तिक-भाव में