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________________ षष्ठी दशा 4 हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 165 हुए हैं काउय-कपोत वर्ण वाली या कृष्ण अगणि-वण्णाभा-अग्रि के समान प्रभायुक्त भूमि है तथा कक्खड-फासा-कर्कश स्पर्श दुरहियासा-दुःख से सहन किया जाता है असुभा नरगा-नरक अशुभ हैं असुभा नरएसु वेयणा-और नरक की वेदना भी अशुभ ही है नो नहीं च-पुनः एव-अवधारणार्थक है णं-वाक्यालङ्कार में नरए-नरक में नेर-इया-नारकी निहायंति-निद्रा लेते हैं वा-अथवा पयलायंति-प्रचला नाम वाली निद्रा लेते हैं वा-अथवा सुति-स्मृति वा-अथवा रति-रति वा-अथवा धिति-धृति वा-अथवा मतिं-बुद्धि की उवलमंति-प्राप्ति करते हैं ते–वे तत्थ-वहां उज्जलं-उज्ज्वल विउलं-विपुल पगाढं-अत्यन्त गाढ कक्कसं-कर्कश कडुयं-कटुक चंडं-चण्ड रुई-रुद्र दुक्खं-दुःख रूप तिक्खं-तीक्ष्ण तिव्वं-तीव्र दुरहियासं-जो दुःखपूर्वक सहन की जाती हैं नरएसु-नरकों में नेरइया-नारकी नरयं-वेयणं-नरक. की वेदना को पच्चणुभवमाणा-अनुभव करते हुए विहरंति-विचरते हैं णं-सर्वत्र वाक्या-लकार में है | मूलार्थ-वे नरक-स्थान भीतर से गोलाकार और बाहिर से चतुष्कोण हैं / नीचे क्षुर के समान संस्थान से स्थित हैं / वहां सदैव तम और अन्धकार ही रहता है / सूर्य, चन्द्रग्रह और नक्षत्रों की ज्योति की प्रभा उनसे दूर हो गई है / उन नरकों का भूमि-तल मेद, वसा, मांस, रुधिर और विकृत रुधिर समूह के कीचड़ से लिप्त रहता है | वे अशुचि और कुत्सित हैं / वहां उत्कट दुर्गन्ध आती है और कृष्णाग्नि के समान प्रभा है | कर्कश स्पर्श दुःख से सहन किया जाता है। नरक अशुभ हैं। उनकी वेदनाएं भी अशुभ ही हैं। नरक में नारकियों को निद्रा तथा प्रचला नाम निद्रा नहीं आती, ना ही उनको स्मृति, रति, धृति और मति उपलब्ध होती है / वे नारकी नरक में उज्ज्वल, विपुल, प्रगाढ़, कर्कश, कटुक, चण्ड, रौद्र, दुःख-मय, तीक्ष्ण, तीव्र और दुःसह्य वेदना का अनुभव करते हुए विचरते हैं / टीका-इस सूत्र में नरक और नरक के दुःखों का दिग्दर्शन कराया गया है, जैसे-नरक का भीतरी भाग गोलाकार और बहिर्भाग चतुष्कोण है / नरकों की भूमि क्षुर
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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