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________________ षष्ठी दशा .. हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 163 आशातना और अयश की अधिकता से, त्रस प्राणियों के घात से, काल के प्रभाव से काल द्वारा भूमि तल को अतिक्रम करके नीचे नरक तल पर जा बैठता है। टीका-इस सूत्र में नास्तिक सिद्धान्त के अनुयायी के कर्म और उसके फल का वर्णन किया गया है / जैसे-वह नास्तिक स्त्री-सम्बन्धी काम-भोगों में मूच्छित रहता है, उनमें विशेष आकाङ्क्षा रखता है, उनके मोह रूपी तन्तुओं से बंधा होता है और उसी में सदा आसक्त रहता है / इसी प्रकार विविध भोगों में न्यून या अधिक समय तक निमग्न वह जिस प्रकार जल में प्रक्षिप्त लोहे का या पत्थर का गोला जल को अतिक्रम कर भूमि-तल पर जा ठहरता है उसी प्रकार वज्र-समान कर्मों से भारी हुआ, पूर्व-जन्म के कर्मों से आवेष्टित होकर, पाप-कर्मों के उदय से, प्रभूत वैर भाव होने से, अप्रतीति की अधिकता से, प्रभूत (अत्यन्त अधिक) छल और विश्वास-घात से, शांति अर्थात् गुणहीनता की अधिकता से, अयश-वृद्धि से, त्रस-प्राणियों का घातक होने के कारण समय आने पर काल करके भूमि-तल को अति-क्रम कर सीधे रत्नप्रभादि नरकों में पहुंचता है अर्थात् अपने अशुभ कर्म भोगने के लिए उनको नरक में जन्म लेना पड़ता है / उक्त कथन का सारांश यह निकला कि जिस प्रकार लोहे या पत्थर का गोला भारी होने के कारण सीधे भूमितल पर ही पहुंचता है, इसी प्रकार अशुभ कर्मों के भार से नास्तिक नरक में जाकर ही आश्रय पाता है, क्योंकि मृत्यु के अनन्तर प्रत्येक जीव अपने कर्मों के अनुसार ही स्वर्ग या नरक लोक को जाता है / उसको कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है। . इस सूत्र में पाप-कर्मों के फल का दिग्-दर्शन कराया है | "कालमास शब्द से दिन रात्रि तथा मुहूर्त आदि का भी बोध कर लेना चाहिए / यह भी ध्यान में रखना उचित है कि किया हुआ पाप-कर्म पुनः कर्ता को स्वयं ही फल के अनुसार कर्म करने में प्रेरित करने लग जाता है / अब सूत्रकार नरक का वर्णन करते हैं: ते णं नरगा अंतो वट्टा बाहिं चउरं सा अहे खुरप्प-संठाण-संठिआ, निच्चंधकार-तमसा ववगय-गह-चंद
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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