________________ 162 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् षष्ठी दशा पदार्थान्वयः-एवामेव-इसी प्रकार ते-वे पुरुष इत्थि-काम-भोगेहिं-स्त्री-काम-भोगों में मुच्छिया-मूच्छित हैं गिद्धा-लंपट हैं गढिया-गर्धित हैं अज्झोववण्णा-परम आसक्त हैं जाव-यावत् चउ-चार पंचमा-पांच छ-छ: दसमाणि वा अथवा भुज्जतरो-प्रभूत काल पर्यन्त वा-अथवा अप्पतरो-अल्पकाल पर्यन्त वा-अथवा भुज्जतरो-प्रभूत काल पर्यन्त काम-भोगाई-काम भोगों को भुजित्ता-भोग कर और वेरायतणाइं-वैर भाव के स्थानों को पसेवित्ता-सेवन कर बहुयं-बहुत पावाइं-पाप कम्माइं-कर्म संचिणित्ता-सञ्चय कर उसन्नं-प्रायः संभार-कडेण कम्मुणा-उस कर्म के भार से प्रेरित किया हुआ से-वह जहानामए-यथानाम वाला अयगोले इ वा-लोह-पिण्ड अथवा सेल-गोले इ. वा-पत्थर का गोला उदयंसि-जल में पक्खित्ते समाणे-प्रक्षिप्त किया हुआ उदगतलममइवत्तित्ता-जल के तल को अतिक्रम करके अहे-नीचे धरणीतले धरती के तल पर पइठाणे-प्रतिष्ठित भवति-होता है एवामे व-इसी प्रकार तहप्पगारे-इस प्रकार का पुरिस-जाए-पुरुष-जात-वज्ज-बहुले-पाप कर्म से परिपुष्ट धूत-बहुले-प्राचीन कर्मों से बंधा हुआ अर्थात् जिसके पुरातन कर्म बहुत हैं पंक-बहुले-पापरूपी कीचड़ से आवेष्टित वेर-बहुले-अधिक वैर करने वाला दंभ-छल नियडि-अति-छल साइ-साति बहुले-अयश : बहुत है अप्पत्तिय-बहुले-अप्रतीति बहुत है उस्सणं-प्रायः तस्स-पाण-घाती-त्रय प्राणियों का घात करने वाला कालमासे-अवसर पर काल-किच्चा-काल करके धरणी-तलमइवत्तित्ता-धरणी तल को अतिक्रम कर अहे-नीचे नरग-नरक में धरणी-तले-भूमि के तल पर पइठाणे-प्रतिष्ठित भवति-होता है / __मूलार्थ-इसी प्रकार वे पुरुष स्त्री-सम्बन्धी काम भोगों के लिए मूर्छित, गृद्ध, अतिगृद्ध और आसक्त रहते हैं | यावत् चार, पांच, छ:, दश वर्ष पर्यन्त अथवा इससे कुछ न्यून या अधिक समय तक काम भोगों को भोग कर और वैर भाव का सञ्चय कर अनेक पाप कर्मों का उपार्जन करते हुए प्रायः भारी कर्मों की प्रेरणा से जैसे लोहे या पत्थर का गोला जल में प्रक्षिप्त किया हुआ उदक-तल को अतिक्रम करके भूमि पर जा बैठता है, इसी प्रकार वजवत् कर्मों से भारी हुआ, पूर्व जन्म के कर्मों से बंधा हुआ, बहुत सारे पाप कर्मों के उदय से, अधिक वैर-भाव से, अप्रतीति की अधिकता से, पाप रूपी कर्दम के बहुत होने से, दम्भ, छल,