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________________ है षष्ठी दशा .. __ हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 187 लहुयंसि-छोटे से अवराहसि-अपराध पर सयमेव-अपने आप ही गरुयं–भारी दंडं-दण्ड वत्तेति-देता है, तं जहा-जैसे-णं-शब्द वाक्यालङ्कार में है / मूलार्थ-उसकी (नास्तिक की) जो आभ्यन्तरी परिषद् होती है, जैसे-माता, पिता, भ्राता, भगिनी, पुत्री और पुत्र-वधू-इनके किसी छोटे से अपराध होने पर भी स्वयं भारी दण्ड देता है / जैसे:____टीका-इस सूत्र में वर्णन किया गया है कि नास्तिक आभ्यन्तरी परिषद् के सदस्यों-माता, पिता, भ्राता, भगिनी, भार्या, पुत्री और पुत्र-वधू के किसी छोटे से अपराध हो जाने पर भी उनको स्वयं भारी से भारी दण्ड देता है / अब दण्ड का स्वरूप वर्णन करते हैं: सीतोदग-वियद्यसि कायं बोलित्ता भवति, उसि-णोदय-वियडेण कायं सिंचित्ता भवति, अगणि-वियडेण कार्य सिंचित्ता भवति, अगणि-काएण कायं उड्डहित्ता भवति, जोत्तेण वा वेत्तेण वा नेत्तेण वा कसेण वा छिवाडीए वा लयाए वा पासाई उद्दालित्ता भवति, दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलुएण वा कवालेण वा कायं आउट्टित्ता भवति, तहप्पगारे पुरिस-जाए संवसमाणे दुम्मणा भवंति, तहप्पगारे पुरिसजाए विप्पवसमाणे सुमणा भवंति / ___शीत-विकटोदके कायं ब्रूडिता भवति, उष्ण-विकटोदकेन कायं सिञ्चिता भवति, अग्नि-कायेन कायमुद्दग्धा भवति, योक्त्रेण वा वेत्रेण वा नेत्रेण वा कशेन वा लघु-कशेन (छिवाडीए) वा लतया वा पाश्र्वान्युद्दालयिता भवति, दण्डेन वा अस्थ्ना वा मुष्ट्या वा लेष्टुकेन वा कपालेन वा कायं आकुट्टिता भवति, तथा-प्रकारे पुरुष-जाते संवसति दुर्मनसो भवन्ति, तथा-प्रकारे पुरुष-जाते विप्रवसति सुमनसो भवन्ति / ' पदार्थान्वयः-सीतोदग-वियडंसि-शीत और विशाल जल में कार्य-शरीर को
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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