________________ ही षष्ठी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम | 163 3 सदा धर्म-श्रवण का इच्छुक रहता है / अनगार-धर्म का पालन करने वाला व्यक्ति 'केवली' पद की प्राप्ति कर सकता है / ___यद्यपि साधु भी वास्तव में धर्म-श्रवण करने से श्रावक कहलाया जा सकता है किन्तु उसका श्रवण कृत्सन (परिपूर्ण) होता है और गृहस्थ का श्रुत अकृत्सन (अपरिपूर्ण) अतः दोनों श्रुत-धारियों में परस्पर भेद दिखाने के लिए गृहस्थ श्रुत-धारी के लिए श्रावक शब्द रूढ़ कर दिया गया है / 'भगवती-सूत्र' के निम्न लिखित पाठ से तो स्पष्ट ही हो जाता है कि व्यवहार नय के अनुसार श्रावक और उपासक शब्द केवल गृहस्थों के लिए ही आते हैं-"केवली का श्रावक या केवली की श्राविका, केवली का उपासक या केवली की उपसिका, साधु का श्रावक या साधु की श्राविका, साधु का उपासक या साधु की उपासिका / जो धर्म-श्रवण का इच्छुक है उसी को श्रावक कहते हैं / अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि श्रावक और उपासक में परस्पर क्या भेद है? उत्तर में कहा जाता है कि श्रावक शब्द अवृत्ति-सम्यक-दृष्टि के लिए तथा उपासक शब्द देश-वृत्ति के लिए सूत्रों में प्रयुक्त हुआ है, जैसे 'उपासक-दशाङ्ग-सूत्र' के आनन्दादि गृहस्थ अधिकार में गृहस्थ के बारह व्रतों के धारण करने पर कहा गया है “समणोवासय जाए” (श्रमणोपासको जातः) अर्थात् श्रमणोपासक हुआ न तु श्रावक / किन्तु जहां श्रावक शब्द का वर्णन है वहां "दंसण-सावए (दर्शन-श्रावकः) यह सूत्र है अर्थात सम्यग्-दर्शनं धारण करने वाला व्यक्ति दर्शन-श्रावक होता है / यही दोनों का परस्पर भेद है / . यह जिज्ञासा हो सकती है कि प्रतिमा शब्द का क्या अर्थ है, उत्तर में कहा जाता है रजोहरण-मुखपोतिकादि-द्रव्यलिङ्ग-धारित्वंप्रतिमात्वम् / " यह प्रतिमा द्रव्य और भाव भेद से दो प्रकार की होती है / साधुओं के समान रजोहरण, मुखपोतिका (मुख पर बंधी हुई पट्टी) आदि धारण करना द्रव्य-प्रतिमा होती है और साधु के गुणों को धारण करना भाव-प्रतिमा कहलाती है / प्रतिमा का अर्थ सादृश्य होता है, अतः साधु के सदृश लिङ्ग और गुण धारण करना ही उपासक प्रतिमा होती है / प्रस्तुत दशा में द्रव्य और भाव दोनों प्रकार की प्रतिमाओं का वर्णन किया गया है / सादृश्य-रूप अर्थ को लक्ष्य कर ही यहां - 'उपासक-प्रतिमा' का प्रयोग किया गया है / इस दशा में उपासक की प्रतिमाओं के पढ़ने से प्रत्येक व्यक्ति सहज ही में जान सकेगा कि उपासक और श्रमण में परस्पर क्या भेद हैं / दोनों का परस्पर केवल गुणों में ही भेद है /