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________________ सर्वज्ञप्रणीत आगम कौन-कौन से हैं ? वर्तमान काल में सर्वज्ञप्रणीत और सत्य पदार्थों के उपदेश करने वाले 32 आगम ही प्रमाण-कोटि में माने जाते हैं | इन आगमों में पदार्थों का वर्णन प्रमाण और नय के आधार पर ही किया गया है / इनके अध्ययन से इन आगमों की सत्यता और इनके प्रणेता सर्वज्ञ या सर्वज्ञ-कल्प स्वतः ही सिद्ध हो जाते हैं / वर्तमान काल में 32 आगम इस प्रकार हैं "से किं तं सम्मसुअं? जं इमं अरहंतेहिं भगवंतेहिं उप्पण्ण नाणदंसणधरेहिं तेलुक्क निरिक्खिअ महिअ पूइएहिं तीयपडुप्पण्ण मणागय जाणएहिं सव्वण्णूहिं सव्वदरिसीहिं पणीअं दुवालसंगं गणिपिडगं तं जहा-आयारो 1, सूयगडो 2 ठाणं 3 समवाओ 4 विवाहपण्णत्ती 5 नायाधम्मक हाओ 6. उवासगदसाओ 7 अंतगडदसाओ 8 अणुत्तरोववाइयदसाओ 6 पण्हवागरणाई 10 विवागसुअं 11 दिद्विवाओ 12 इच्चेअं दुवालसंग गणिपिडगं चोद्दस पुस्विस्स सम्मसुअं अभिण्ण दस पुव्विस्स सम्मसुअं तेण परं भिण्णेसु भयणा से तं सम्मसुअं / नंदीसूत्र (सू० 40) - 12 अंगशास्त्र, 12 उपांगशास्त्र, 4 मूलशास्त्र, 4 छेदशास्त्र और 1 आवश्यक सूत्र / / किन्तु ये 33 होते हैं | विचार करना चाहिए कि इस समय 11 अंगशास्त्र विद्यमान हैं; 12 वाँ दृष्टिवादाङ्ग-शास्त्र व्यवच्छेद हुआ माना जाता है / अंगशास्त्रों के नाम निम्नलिखित हैं-१ आचारांगशास्त्र, 2 सूयगडांगशास्त्र, 3 स्थानांगशास्त्र, 4 समवायांगशास्त्र, 5 व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवतीशास्त्र), 6 ज्ञाताधर्मकथांगशास्त्र, 7 उपासकदशांगशास्त्र, 8 अंतकृद्दशांगशास्त्र, 6 अनुत्तरौपपातिकशास्त्र, 10 प्रश्नव्याकरणशास्त्र, 11 विपाकशास्त्र, 12 दृष्टिवादांगशास्त्र (जो व्यवच्छेद हो गया है)। उपांगशास्त्रों के नाम ये हैं–१ औपपातिकशास्त्र, 2 राजप्रश्रीयशास्त्र, 3 जीवाभिगमशास्त्र, 4 प्रज्ञापनाशास्त्र, 5 जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिशास्त्र, 6 सूर्यप्रज्ञप्तिशास्त्र, 7 चन्द्रप्रज्ञप्तिशास्त्र, 8 निरयावलियाओ, 6 कप्पवडिंसियाओ, 10 पुफियाओ, 11 पुष्फचूलियाओ, 12 वण्हिदसाओ / और चार मूल शास्त्र ये हैं-दशवैकालिकशास्त्र 1, उत्तराध्ययनशास्त्र 2, नंदीशास्त्र /
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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