________________ चतुर्थी दशा .. हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 116 3 ____ से किं तं दोस-निग्घायणा-विणए ? दोस-निग्घायणा-विणए चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-कुद्धस्स कोहं विणएत्ता भवइ, दुट्ठस्स दोसं णिगिण्हित्ता भवइ, कंखियस्स कंखं च्छिदित्ता भवइ, आया-सुप्पणिहिए यावि भवइ / से तं दोस-निग्घायणा-विणए / / 4 / / अथ कोऽसौ दोष-निर्घातन-विनयः? दोष-निर्घातन-विनयश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः तद्यथा-क्रुद्धस्य कोप-विनेता भवति, दुष्टस्य दोषं निग्रहीता भवति, काङ्क्षावतः काक्षां छेत्ता भवति, आत्म-प्रणिहितश्चपि भवति / सोऽयं दोष-निर्घातन-विनयः / / 4 / / पदार्थान्वयः-से किं तं-वह कौन सा दोस-निग्घायणा-विणए-दोष-निर्घातन-विनय है ? वह चउविहे-चार प्रकार का पण्णत्ते-प्रतिपादन किया गया है तं जहा-जैसे-कुद्धस्स-क्रुद्ध व्यक्ति के कोह-विणएत्ता भवइ-क्रोध दूर करने वाला है दुट्ठस्स-दुष्ट के दोस-दोष को णिगिण्हित्ता-निग्रह करने वाला भवइ-है कंखियस्स-काङ्क्षा वाले की कंख-काङ्क्षा का छिदित्ता-छेदन करने वाला भवइ-है और आया-अपनी आत्मा को सुप्पणिहिए यावि भवइ-अच्छे मार्ग पर लगाने वाला या भली प्रकार सुरक्षित रखने वाला है और जीवादि पदार्थों को अनुप्रेक्षा में स्थापित करने वाला है / से तं-यही दोस-निग्घायणा-विणए-दोष-निर्घातना-विनय है। ..मूलार्थ-दोष-निर्घातना-विनय किसे कहते हैं ? दोष-निर्घातना-विनय चार प्रकार का प्रतिपादन किया गया है / जैसे-क्रोधी का क्रोध दूर करना, दुष्ट के दोषों को हटाना, आकांक्षित की काङ्क्षा को छेदन करना और आत्मा को अच्छे मार्ग पर लगाना / यही दोष-निर्घातना-विनय टीका-इस सूत्र में दोष-निर्घातना विनय का विषय प्रतिपादन किया गया है / इस विनय का मुख्य उदेश्य कषाय आदि दोषों का विनाश करना है / वह चार प्रकार का होता है उनमें पहला भेद क्रोधी के क्रोध को दूर करना है / यदि गण में कोई शिष्य क्रोध-शील है तो गणी का कर्तव्य है कि मीठे वचनों से समझा बुझाकर इस तरह उसका