________________ - है चतुर्थी दशा . हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 117 का तात्पर्य पुस्तकों को लेकर ताले में बन्द कर देने से नहीं, नांही बिना अर्थ-ज्ञान के मूलमात्र अध्ययन से है, अपितु मूल पाठ के अर्थ-ज्ञान-पूर्वक अध्ययन से है / प्रश्न यह उपस्थित होता है कि 'सूत्र' शब्द का क्या अर्थ है ? उत्तर में कहा जाता है कि जो अर्थों की सूचना करता है उसको सूत्र कहते हैं या सुप्तवत् अर्थ के बिना जिसका भाव समझ में न आए उसका नाम सूत्र है तथा जो अर्थों को सीता है वही सूत्र है अथवा जो सूत्रवत् मार्ग-प्रदर्शक है / अतः सूत्रों का अर्थ सहित विधि-पूर्वक अध्ययन करना चाहिए, जिससे वास्तविक श्रुत-ज्ञान की उपलब्धि हो / अब सूत्रकार विक्षेपणा-विनय का विषय वर्णन करते है: से किं तं विक्खेवणा-विणए ? विक्खेवणा-विणए चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-अदिठ्ठ-धम्म दिठ्ठ-पुव्वगत्ताए विणएइत्ता भवइ, दिट्ट-पुव्वगं साहम्मियत्ताए विणएइत्ता भवइ, चुय-धम्माओ धम्मे ठावइत्ता भवइ, तस्सेव धम्मस्स हियाए, सुहाए, खमाए, निस्सेसाए, अनुगमियत्ताए अब्भुढेत्ता भवइ / से तं विक्खेवणा-विणए / / 3 / / अथ कोऽसौ विक्षेपणा-विनयः? विक्षेपणा-विनयश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-अदृष्ट-धर्मं दृष्ट-पूर्वकतया विनेता भवति, दृष्ट-पूर्वकं साधर्मिकतया विनेता भवति, च्युतं धर्माद् धर्म स्थापयिता भवति, तस्यैव धर्मस्य हिताय, सुखाय, क्षमाय, निःश्रेयसाय, अनुगामिकतया ऽअभ्युत्थाता भवति / सोऽयं विक्षेपणा-विनयः / / 3 / / ___ पदार्थान्वयः-से किं तं-वह कौन सा विक्खेवणा-विणए-विक्षेपणा विनय है ? (गुरू कहते हैं) विक्खेवणा-विणए-विक्षेपणा-विनय चउबिहे-चार प्रकार का पण्णत्ते-प्रतिपादन किया है तं जहा-जैसे-अदिठ्ठ-धम्म-जिसने पहिले सम्यक्-दर्शन नहीं किया है उसको दिट्ठ-पुव्व-गताए-सम्यक् दर्शन में विणएत्ता भवइ-स्थापित करे किन्तु जो दिठ्ठ-पुव्वगं-दृष्ट-पूर्वक है उसको साहम्मियत्तए-साधर्मिकता में विणएइत्ता स्थापन करे अर्थात् उसको सधर्मी बनावे | चुय-धम्माओ-धर्म से गिरते हुए को धम्मे-धर्म में ठावइत्ता-स्थापन करता भवइ-है / तस्सेव-उसी धम्मस्स-धर्म के हियाए-हित के लिए