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________________ 114 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् चतुर्थी दशा अथ कोऽसावाचार-विनयः ? आचार-विनयश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-संयम-सामाचारी चापि भवति, तपःसामाचारी चापि भवति, एकाकि-विहार-सामाचारी चापि भवति / सोऽयमाचार-विनयः / / 1 / / .. ___पदार्थान्वयः-से किं तं-वह कौन सा आयार-विणए-आचार-विनय है? (गुरू कहते हैं) आयार-विणए आचार-विनय चउविहे-चार प्रकार का पण्णत्ते-प्रतिपादन किया गया है तं जहा-जैसे संजम-सामायारी-संयम की सामाचारी सिखाने वाला भवइ-है तव-सामायारी भवइ-तप कर्म की सामाचारी सिखाने वाला है गण-सामायारी भवइ-गण-सामाचारी सिखाने वाला है एकल्ल-विहार करने की सामायारी-सामाचारी सिखाने वाला भवइ-है / से तं-यही आयार-विणए-आचार-विनय है / 'च' और 'अपि' शब्द से जितने भी उक्त सामाचारियों के मूल या उत्तर भेद हैं उन सबका सिखाने वाला हो / __ मूलार्थ-आचार-विनय किसे कहते हैं ? आचार-विनय के चार भेद वर्णन किये गये हैं, जैसे-संयम-सामाचारी, तप-सामाचारी, गण-सामाचारी और एकाकि-विहार-सामाचारी / (इन सबके सिखाने वाला आचार-विनय का यथार्थ अधिकारी होता है / ) यही आचार-विनय है / ___टीका-इस सूत्र में आचार-विनय का वर्णन किया गया है / गणी का मुख्य कर्तव्य है कि सब से पहिले शिष्यों को आचार-विनय में निपुण करे / आचार-विनय में निपुण होने पर शेष विनयों की प्राप्ति सुगमतया हो सकती है / आचार-विनय के सूत्रकार ने चार भेद प्रतिपादन किये हैं, जैसे-संयम सामाचारी का बोध कराना इसका प्रथम भेद है / ज्ञानादि द्वारा निवृत्ति कराना संयम कहलाता है / वह पञ्चाश्रव-हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन, परिग्रह, पञ्चेन्द्रिय, क्रोध, मान, माया, लोभ, मन, वचन ओर काय निरोध रूप 17 प्रकार का वर्णन किया गया है / स्वयं संयम करना, जो संयम से शिथिल हो रहे हैं उनको उसमें स्थिर करना ओर संयम के भेदों का ज्ञान करना और कराना ही संयम–सामाचारी कहलाती है / इसी प्रकार तप-सामाचारी के विषय में जानना चाहिए, अर्थात् जितने भी तप के भेद हैं उनको स्वयं ग्रहण करना, जो व्यक्ति तप कर रहे हों उनको उत्साहित करना, तो तपकर्म में शिथिल हो रहे हों उनको उसमें स्थिर करना तथा
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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