________________ 104 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् चतुर्थी दशा उससे वह जितना स्मरण रख सकता है उसको भी भूल जाएगा। इससे आत्म-विराधना और संयम-विराधना होगी, अतः शक्ति के अनुसार ही शिष्य को पढ़ाना चाहिए। चौथी वाचना-सम्पत् के विषय में अनेक मत भेद हैं। कोई कहते हैं कि इसका अर्थ यह है कि शिष्य जितने सूत्रों का अर्थ अवधारण कर सके उसको उतने ही सूत्र पढ़ाने चाहिए / दूसरों के मत अनुसार इसके–अर्थ की परस्पर सङ्गति, प्रमाण और नय युक्त अर्थों का वर्णन करना तथा कारक, विभक्ति और समास आदि सहित सूत्र और अर्थ की संयोजना करना आदि अर्थ है; तथा अन्यों के मत से-एक अर्थ के अनेक पर्यायों का शिष्य को दिग्दर्शन कराना, विचित्र सूत्रों के द्वारा अर्थ का अध्यापन करना तथा ऐसी रीति से पढ़ाना जिससे शिष्य अनेक अर्थों का ज्ञान कर सके आदि-आदि अर्थ हैं / इन सब का तात्पर्य यही है कि शिष्य जिस प्रकार भी ज्ञान प्राप्त कर सके उसको ज्ञान कराना चाहिए / यही वाचना-सम्पत् है / इस प्रकार इस सम्पदा में पाठ्यक्रम और गणी की पाठन योग्यता का विषय वर्णन किया गया है / - इसके अनन्तर सूत्रकार अब मति-सम्पत् का वर्णन करते हैं: से किं तं मइ-संपया? मइ-संपया चउ-विहा पण्णत्ता, तं जहा-उग्गह-मइ-संपया, ईहा-मइ-संपया, अवाय-मइ-संपया, धारणा-मइ-संपया / से किं तं उग्गह-मइ-संपया ? उग्गह-मइ-संपया छ-विहा पण्णत्ता, तं जहा-खिप्पं उगिण्हेइ, बहु उगिण्हेइ, बहुविहं उगिण्हेइ, धुवं उगिण्हेइ, अणिस्सियं उगिण्हेइ, असंदिद्धं उगिण्हेइ / से तं उग्गह-मइ-संपया / एवं ईहा-मइवि / एवं अवाय-मइवि | से किं तं धारणा-मइ-संपया ? धारणा-मइ-संपया छ-विहा पण्णत्ता, तं जहा-बहु धरेइ, बहुविहं धरेइ, पोराणं धरेइ, दुद्धरं धरेइ, अणिस्सियं धरेइ, असंदिद्धं धरेइ / से तं धारणा-मइ-संपया / / 6 / /