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________________ 004 70 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् तृतीय दशा यह प्रश्न हो सकता है कि यदि वह व्यक्ति शिष्य का ही परिचित हो और उससे ही वार्तालाप करने लगे तो उस समय को क्या करना चाहिए / उत्तर में कहा जा सकता है कि उस समय यह भी शिष्य को गुरू की आज्ञा से ही उससे बातचीत करनी चाहिए; क्योंकि ऐसा करने से उस व्यक्ति को भी उस (शिष्य) के विनय, सभ्यता और योग्यता का परिचय मिल जाएगा। अब सूत्रकार वचन के न ग्रहण करने की आशातना का वर्णन करते हैं: सेहे रायणियस्स राओ वा वियाले वा वाहरमाणस्स अज्जो के सुत्ता के जागरा तत्थ सेहे जागरमाणे रायणियस्स अपडिसुणेत्ता भवइ आसायणा सेहस्स / / 13 / / शैक्षो रात्निकस्य रात्रौ वा विकाले व्याहरतः "हे आर्याः ! के सुप्ताः के जाग्रति" तत्र, जाग्रदपि रात्निकस्याप्रतिश्रोता भवत्याशातना शैक्षस्य / / 13 / / पदार्थान्वयः-सेहे-शिष्य रायणियस्स-रत्नाकर के राओ-रात्रि में वा-अथवा वियाले वा-विकाल में वाहरमाणस्स-बुलाने पर जैसे-"अज्जो-हे आर्यो ! के कौन-कौन सुत्ता-सोए हुए हैं और के-कौन-२ जागरा-जागते हैं तत्थ-वहां सेहे-शिष्य जागरमाणे-जागते हुए भी रायणियस्स-रत्नाकर के वचन को अपडिसुणेत्ता-सुनता नहीं है तो सेहस्स-शिष्य को आसायणा-आशातना भवइ-होती है। ____ मूलार्थ-रत्नाकर ने रात्रि या विकाल में शिष्य को आमन्त्रित किया कि, हे आर्यो ! कौन-२ सोए हुए हैं और कौन-२ जागते हैं / उस समय यदि शिष्य जागते हुए भी रत्नाकर के वचनों को न सुने तो उसको आशातना लगती है। टीका-इस सूत्र में बताया गया है कि यदि शिष्य गुरू के बुलाने पर मौन धारण कर ले तो उसको आशातना लगती है / जैसे-रत्नाकर या गुरू ने रात्रि या विकाल में साधुओं को आमन्त्रित किया “हे आर्यो ! इस समय कौन-२ साधु सोता है और कौन-२ जाग रहा है ?" उस समय यदि कोई शिष्य जागता हो और मन में विचारे कि यदि मैं
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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