________________ 40 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् द्वितीया दशा शङ्का उत्पन्न हो सकती है कि यदि राजा द्वादश-व्रत-धारी जैनी हो और विज्ञप्ति द्वारा मुनियों को भोजन के लिये निमन्त्रित करे तो उस समय उनको क्या करना उचित है ? इस के समाधान में कहा जाता है कि उत्सर्ग मार्ग में ही राज-पिण्ड का निषेध किया गया है न कि अपवाद मार्ग में / अपवाद मार्ग में राज-पिण्ड का निषेध नहीं है तथा यह मत जैन-मत सापेक्ष है / जिसकी अपेक्षा से राज-पिण्ड का निषेध है वह पक्ष भी ठीक है और जिस पक्ष में राज-पिण्ड का ग्रहण है वह भी ठीक है, किन्तु अनेक दोषों के सम्भव होने से उस मार्ग में भी निषेध ही पाया जाता है / अब सूत्रकार पष्ठ शबल दोष का विषय वर्णन करते हैं:- .. कीयं वा पामिच्चं वा आच्छिज्जं वा अणिसिटुं वा आहट्ट दिज्जमाणं वा भुंजमाणे सबले / / 6 / / क्रीतं वा (अपमित्य) प्रामित्यकं वा आच्छिन्नं वा अनिसृष्टं वा आहृत्यदीयमानं वा भुजानः शबलः / / 6 / / / पदार्थान्वयः-कीयं-मूल्य देकर लिया हुआ वा-अंथवा पामिच्चं-उधार लिया हुआ वा अथवा आच्छिज्ज-किसी निर्बल से छीन कर लिया हुआ वा-अथवा अणिसिट्ठ-साधारण पदार्थ बिना आज्ञा के लिया हुआ वा-अथवा आहटु-साधु के लिए उसके सन्मुख लाकर दिज्जमाणं-दिए जाते हुए पदार्थ का भुंजमाणे-भोग करने से सबले-शबल-दोष होता है / अर्थात् उक्त दोषों के सेवन करने से शबल दोष होता है / मूलार्थ-मूल्य से लिए हुए, उधार लिए हुए, साधारण की बिना आज्ञा के लिए हुए, निर्बल से छीन कर लिए हुए, तथा साधु के स्थान पर लाकर दिये जाने वाले आहार के भोगने से शबल दोष होता है | टीका-इस सूत्र में साधु-वृत्ति की शुद्धि के लिए पांच प्रकार के आहार को छोड़ने की आज्ञा प्रदान की गई है / जैसे साधु को उसके नाम से वस्तु मोल लेकर देना क्रीत आहार कहलाता है / यद्यपि इसके अनेक भेद होते हैं, तथापि मुख्य निम्नलिखित चार ही हैं ___१-आत्म-द्रव्य-क्रीत, २-आत्म-भाव-द्रव्य-क्रीत, ३-पर-द्रव्य-क्रीत, ४-पर-भावद्रव्य-क्रीत / इस प्रकार के आहार लेने से अनेक दोषों की प्राप्ति होती है /