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________________ ना द्वितीया दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / संसार में ऐसे व्यक्ति भी हैं जो सदैव विषय वासना में लिप्त हो अपने पवित्र जीवन को शबल-दोष-युक्त बनाते हैं; किन्तु अपनी भद्र कामना करने वाले व्यक्ति को कदापि ऐसा न करना चाहिए / अब सूत्रकार तृतीय शबल का वर्णन करते हैं:राइ-भोअणं भुंजमाणे सबले / / 3 / / रात्रि-भोजनं भुजानः शबलः / / 3 / / पदार्थान्वयः-राइ-भोअणं-रात्रि में भोजन भुंजमाणे-भोगते हुए सबले-शबल दोष लगता है / मूलार्थ-रात्रि में भोजन करने से शबल दोष होता है / टीका-इस सूत्र में जीवरक्षा के लिए रात्रि-भोजन का विवेचन किया गया है / जैसे-“भूज्यते इति भोजनं रात्रौं भोजनं रात्रि-भोजनम" रात्रि में अशनादि पदार्थों का उपभोग करना 'रात्रि-भोजन' कहलाता है / अशनादि पदार्थों के चार भाग निम्नलिखित रीति से कहे गये हैं-१-द्रव्य से अन्नादि, २-क्षेत्र से-समय क्षेत्र प्रमाण, ३-काल से-(क) दिन में ग्रहण किया भोजन दिन में खा लिया (ख) दिन में ग्रहण किया रात्रि में खा लिया (ग) रात्रि में ग्रहण किया दिन में खा लिया (घ) रात्रि में ग्रहण किया रात्रि में खाया, ४-भाव से-अशनादि यदि राग द्वेष से खाया जा रहा है तब भी शबल दोष की प्राप्ति होती है / यह ध्यान रखना चाहिए कि काल के चार विभागों में से प्रथम विभाग शुद्ध है बाकी के तीन अशुद्ध हैं / विधिपूर्वक भोजन करने से शबल दोष नहीं होता है / इस सूत्र में रात्रि-भोजन को शबल-दोष-युक्त कहा गया है / .. अब यह प्रश्न उपस्थित होता है कि रात्रि-भोजन से क्या हानि है ? गुरु उत्तर देते हैं कि रात्रि में भोजन करने से प्रथम तो अहिंसा व्रतकी पूर्ण रूप से पालना नहीं हो सकती, क्योंकि सूक्ष्म जीव उपयोग पूर्वक देखने से जिस प्रकार दिन में दृष्टिगोचर हो सकते हैं उस प्रकार रात्रि में नहीं होते / अतः सिद्ध हुआ कि जीव रक्षा के लिए रात्रि में भोजन न करना चाहिए / दूसरे में रात्रि के समय जीव तथा निर्जीव कण्टकादि स्पष्ट रूप से नहीं दिखाई देते, इनका भोजन में आना बहुत सम्भव है और इससे नाना प्रकार
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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