________________ - द्वितीया दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 35 3 इत्यादि रोग इसी कर्म के प्रभाव से होते हैं / तथा स्मृति शक्ति की न्यूनता, अप्रतिभा, मस्तक पर तेजका अभाव, मन की विशेष चञ्चलता, किसी पदार्थ में दृढ़ विश्वास न होना, सभा-आदि में लज्जा युक्त होना, आंखों के तेज का नाश, शीघ्र ही उष्ण होना, धैर्य की न्यूनता, आलस्य की वुद्धि, चित्त में भ्रम, बल का नाश, नपुंसकता, स्वप्न में वीर्य-पात तथा मूत्र के साथ धातु-पतनादि विकार हस्त-मैथुन से ही उत्पन्न होते हैं / हस्त-मैथुन करने वाले के यहां सन्तति होना तो अलग रहा, वह इस दुष्कर्म को करने से अपने आप-भी अल्पाय हो जाता है / संसार में ऐसा कोई सत्कर्म नहीं जिसका हस्त-मैथुन से नाश नहीं होता नाहीं कोई ऐसा रोग है जिसका हस्त-मैथुन करने वाले पर आक्रमण नहीं होता; क्योंकि प्रतिश्याय (जुकाम या शीत) के पुनः-२ होने से मस्तिष्क का खोखलापन, जठराग्नि मन्द होने से क्षुधा-मान्द्य (भूख कम लगना), रुधिर अधिक न होने से श्लेष्म-वृद्धि आदि होते ही रहते हैं / तथा सदा कब्जी रहने से शरीर मिट्टी सा हो जाता है / इसके अतिरिक्त "जरामरणरोग़शोकबाहुल्यम्” सूत्रोक्त सारे विकार उसके पीछे पड़े ही रहते हैं / अर्थात् मैथुन क्रिया से शारीरिक कान्ति का नाश, अपमृत्यु, रोग (शारीरिक रोग) और शोक (मानसिक चिन्ता) बढ़ते ही रहते हैं / अतः मूर्खता से पवित्र वीर्य का हस्त द्वारा नाश न करना चाहिए; क्योंकि इसकी रक्षा पर ही जीवन की सत्ता निर्भर है / * हस्त-मैथुन करने वाले अपने पवित्र सदाचार को शबल (दागी) बनाते हैं और शरीर को रोगों का घर बना कर अपने जीवन पर अपने हाथ से कुल्हाडा मारते हैं / अतः ऐसे कर्म कदापि न करने चाहिएं और अन्य व्यक्तियों से भी न कराने चाहिएं ना ही करने वालों को उत्साह देना चाहिए / अब सूत्रकार दूसरे शबल का विषय वर्णन करते है:मेहुणं पडि-सेवमाणे सबले / / 2 / / मैथुनं प्रति-सेवमानः शबलः / / 2 / / पदार्थान्वयः-मेहुणं-मैथुन, पडिसेवमाणे-सेवन करते हुए, सबले-शबल दोष होता है |