________________ है 34 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् द्वितीया दशा नाम से प्रकाशित कर दिया हो ? समाधान में कहा जाता है कि भगवान् के कथन में अलौकिक शक्ति होती है, यह युक्ति-संगत और बुद्धि-ग्राह्य होता है और इतना ही नहीं किन्तु दोनों लोकों के लिए हितकारी भी होता है / प्रस्तुत दशा में ये सब गुण मिलते हैं अतः इस में कोई सन्देह नहीं कि यह कथन भगवान् का ही है / अपना शुभ चाहने वालों को इसका अध्ययन आदर और श्रद्धा से करना चाहिए / अब सूत्रकार प्रस्तुत विषय का वर्णन करते हुये प्रथम शबल दोष का विषय वर्णन करते हैं: हत्थ-कम्मं करेमाणे सबले / / 1 / / हस्त-कर्म-कुर्वन् शबलः / / 1 / / पदार्थान्वयः-हत्थकम्म-हस्त-क्रिया करेमाणे-करता हुआ सबले-शबल दोष युक्त होता है / मूलार्थ-हस्त-क्रिया करने से शबल दोष लगता है / टीका-इस सूत्र में इस बात का प्रकाश किया गया है कि संसार में ऐसे अनभिज्ञ लोग भी हैं जो अनेक ऐसे कुकर्म कर बैठते हैं जिनसे सहज में ही आत्म-विराधना तथा संयम-विराधना उत्पन्न हो जाती हैं / संसार में ऐसे 2 नीच कर्म हैं जिनका सम्पूर्ण फल इस सारे जीवन में भी नहीं भुगता जा सकता, अतः परलोक में भी उनका परिणाम भोगना पड़ता है / जिन कर्मों के प्रभाव से मनुष्य जन्म ही व्यर्थ हो जाता है और आत्मा को सुगति के स्थान पर दुगति भोगनी पड़ती है अर्थात् उसका सम्पूर्ण जीवन दुःख-मय हो जाता है / इस सूत्र में कुछ ऐसे ही कर्मों का वर्णन किया गया है / जैसे मोहनीय कर्म के उदय से किसी जीव को वेद विकार हो गया, उसके वश में आकर पुरुष हस्त-क्रिया द्वारा वीर्यपात और स्त्री किसी काष्ठादि द्वारा कुचेष्टा करे तो अवश्य ही निर्बल हो रोगों के घर बन जायेंगे / / लिखा भी है: कम्पः स्वेदः श्रमो मूर्छा भ्रमानिर्बल-क्षयः / राजयक्ष्मादि रोगाश्च भवेयुमैथुनोत्थिताः / /