________________ आनन्द की पत्नी शिवानन्दा का वर्णन__ मूलम् तस्स णं आणंदस्स गहावइस्स सिवनंदा (सिवानन्दा) नामं भारिया होत्था, अहीण जाव सुरूवा। आणंदस्स गाहावइस्स इट्ठा, आणंदेणं गाहावइणा सद्धिं अणुरत्ता, अविरत्ता इट्टे सद्द० जांव पंचविहे माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ // 6 // छाया तस्य खलु आनन्दस्य गाथापतेः शिवानन्दा नाम भार्या आसीत्, अहीना यावत् सुरूपा। आनन्दस्य गाथापतेरिष्टा। आनन्देन गाथापतिना सार्द्धमनुरक्ता, अविरक्ता, इष्टान् शब्दान् यावत् पञ्चविधान् मानुष्यान् कामभोगान् प्रत्यनुभवन्ती विहरति / शब्दार्थ तस्स ण आणंदस्स गाहावइस्स—उस आनन्द गाथापति की, सिवनंदा नामं भारिया होत्था—शिवानन्दा नामक भार्या थी। अहीण जाव सुरूवा–अहीन अर्थात् पूर्ण अङ्गोपाङ्ग वाली तथा रूपवती थी। आणंदस्स गाहावइस्स—आनन्द गाथापति को, इट्ठा—प्रिय थी, आणंदेणं गाहावइणा सद्धिं अणुरत्ता—आनन्द गाथापति के प्रति अनुरक्त थी, अविरत्ता-अविरक्त थी, इट्टे मनोनुकूल, सद्द० जाव पञ्चविहे शब्दादि पांच प्रकार के, माणुस्सए मानवीय, कामभोए—कामभोगों का, पच्चणुभवमाणी विहरइ–आनन्द लेती हुई जीवन यापन कर रही थी। भावार्थ—आनन्द गाथापति की शिवानन्दा नामक पत्नी थी। वह सर्वाङ्ग परिपूर्ण एवं सुन्दरी थी। . आनन्द को अत्यन्त प्रिय थी। उसके प्रति अनुरक्त एवं अविरक्त थी। और उसके साथ इच्छानुकूल शब्द, रूप आदि पांच प्रकार के मनुष्य-जन्म सम्बन्धी कामभोगों का उपभोग करती हुई जीवन-यापन कर रही थी। टीका इस सूत्र में आनन्द गाथापति की भार्या का वर्णन है। वह सर्वांग सुन्दर तथा स्वस्थ थी। रूप-लावण्य तथा सुलक्षणों से सम्पन्न थी। वह आनन्द गाथापति को प्रिय थी और आनन्द उसे प्रिय था। दोनों शब्द, रूप, रस, गन्ध तथा स्पर्श सम्बन्धी इन्द्रिय सुखों का आनन्द लेते हुए जीवन यापन कर रहे थे। सूत्रकार ने स्त्री की योग्यता के विषय में दो पद दिये हैं—अनुरक्ता और अविरक्ता। अनुरक्ता की व्याख्या निम्नलिखित है "घर कम्म वावडा जा, सव्वसिणेहप्पवड्ढणी दक्खा / छाया विव भत्तणुगा, अणुरत्ता, सा समक्खाया // " 1 गृहकर्म व्यापृता या सर्वस्नेहप्रवर्द्धनी दक्षा | छायेव भत्रनुगा अनुरक्ता, सा समाख्याता // श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 80 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन