________________ देता। वह अपने नए अनुभव के साथ नई परम्परा को जन्म देता है। तीर्थंकर अपने युग में इसीलिए नए तीर्थ की स्थापना करते हैं। प्रवचन का अर्थ है वह शब्द जो अपने आप में प्रमाण है। जिसके सत्य असत्य का निर्णय किसी प्राचीन परम्परा के आधार पर नहीं किया आता। इसके लिए वक्ता में दो बातें होनी आवश्यक हैं 1. वह वीतराग हो अर्थात् कोई बात राग-द्वेष या स्वार्थ से प्रेरित होकर न कहे | 2. वह सर्वज्ञ हो अर्थात् प्रत्येक बात को पूरी तरह जानता हो जिससे भूल या गलती की शङ्का न रहे। भगवान महावीर में ये दोनों बातें थीं। इसीलिए उनकी वाणी को प्रवचन कहा गया है। पल्योपम—एक योजन लम्बे, एक योजन चौड़े और एक योजन गहरे गोलाकार बाल-खंडों से भरे कूप की उपमा से जो काल गिना जाए उसे पल्योपम कहते हैं। पल्योपम के तीन भेद हैं— 1. उद्धार पल्योपम, 2. अद्धा पल्योपम, 3. क्षेत्र पल्योपम। चारों गतियों के जीवों की आयु की गणना सूक्ष्म अद्धा पल्योपम से की जाती है। इसका विशेष विचरण अनुयोगद्वार सूत्र में है। : पव्वइत्तए—प्रव्रजितुम् अ. 1. सू. १२–जैन साहित्य में पवज्जा (प्रव्रज्या) का अर्थ है—घर बार तथा कुटुम्ब छोड़कर मुनिव्रत अङ्गीकार करना। यह शब्द व्रज धातु से बना है जिसका अर्थ है चले जाना। 'प्र' उपसर्ग ‘सदा के लिए' अर्थ प्रकट करता है। वैदिक परम्परा का परिव्राजक शब्द भी इसी धातु से बना है किन्तु वहां परि उपसर्ग है जिसका अर्थ है चारों ओर। इधर-उधर चारों दिशाओं में घूमने वाले संन्यासी को परिव्राजक कहा जाता है। प्रव्रज्या की तुलना में वैदिक परम्परा का संन्यास शब्द है। यह शब्द असुड्-क्षेपणे (दिवादिगण) धातु से बना है। इसका अर्थ है फैंकना। जो व्यक्ति गृहस्थ जीवन के समस्त उत्तरदायित्व को तथा उसके लिए आवश्यक कार्यों को छोड़कर चला जाता है वह संन्यासी कहा जाता है। ___ परियण—परिजन अ. 1 सू. ८–परिवार के व्यक्तियों के लिए उन दिनों दो शब्दों का प्रयोग होता था, स्वजन और परिजन / पत्नी, पुत्र, पौत्र आदि कुटुम्ब के व्यक्ति स्वजन कहे जाते थे और नौकर-चाकर आदि परिजन। प्राणातिपात जैन धर्म में प्राणों की संख्या 10 है, पांच ज्ञानेन्द्रियां, मन, वचन, काया, श्वासोच्छ्वास तथा आयुष्य। इनमें से किसी का नाश करना, कष्ट पहुंचाना या प्रतिबन्ध लगाना हिंसा है। उदाहरण के रूप में यदि हम किसी के स्वतन्त्र चिन्तन पर प्रतिबन्ध लगाते हैं तो यह काया रूप श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 386 / परिशिष्ट