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________________ जाति से कुम्हार थी। परिव्राजक जीवन के २४वें वर्ष में एक बार गोशालक उसके पास आपण में ठहरा हुआ था। छः दिशाचर भी वहां आए। उस समय भगवान् महावीर भी श्रावस्ती में ठहरे हुए थे। उन्होंने गोशालक के जीवन का वर्णन किया और कहा कि वह जिन नहीं है। इस पर गोशालक ऋद्ध हो गया और उसने महावीर के शिष्य आनन्द को बुलाकर कहा यदि महावीर मेरे र के शिष्य आनन्द को बलाकर कहा यदि महावीर मेरे विरुद्ध कुछ कहेंगे तो मैं उन्हें तेजोलेश्या द्वारा भस्म कर दूंगा। आनन्द ने महावीर के पास जाकर सारी बात कही। भगवान् ने उत्तर दिया, यह सत्य है कि गोशालक के पास तेजोलेश्या है किन्तु वह उसका प्रयोग अरिहन्त पर नहीं कर सकता, अरिहन्त की शक्ति उसकी अपेक्षा कहीं अधिक है। उन्होंने आनन्द के द्वारा अपने शिष्यों को कहलाया कि वे गोशालक के साथ किसी प्रकार का सम्पर्क या वार्तालाप न करें। ___एक दिन गोशालक अपने शिष्यों के साथ श्रमण भगवान महावीर के पास पहुंचा और उनसे कहने लगा—“आपका शिष्य मंखलिपुत्र गोशालक बहुत दिन पहले मर चुका है। मैं वह नहीं हूं। मैं तो उदायी कौण्डिनेय हूं।'' उसने अपने पिछले सात जन्म भी बताए। साथ ही अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन भी किया। उत्तर में महावीर ने कहा-“तुम अपने असली रूप को छिपाते हो किन्तु वह मुझसे छिपा नहीं रह सकता।" इस पर गोशालक को क्रोध आ गया और उसने तेजोलेश्या द्वारा महावीर के दो शिष्यों को भस्म कर दिया। गोशालक ने महावीर पर भी उसका प्रयोग किया किन्तु वह निष्फल गई। __ महावीर पर प्रयोग की गई तेजोलेश्या निष्फल होने पर स्वयं गोशालक को जलाने लगी। अपने निवास स्थान पर लौटकर वह विक्षिप्त के समान रहने लगा। कभी नाचता, कभी गाता, कभी हालाहला के सामने कुचेष्टाएं करता और कभी अपने शरीर को कीचड़ से लीप लेता। अन्त में जब उसने देखा कि मृत्यु समीप आ गई है तो अपने स्थविरों को बुलाकर कहा—महावीर ही सच्चे जिन हैं। तुम लोग उन्हीं की उपासना करना। मैंने जो प्ररूपणा की है वह मिथ्या है। इस बात को सर्वसाधारण को घोषित कर देना। गोशालक मरकर देवता के रूप में उत्पन्न हुआ और अन्त में मोक्ष को प्राप्त करेगा। जैन और बौद्ध साहित्य से ज्ञात होता है कि उन दिनों आजीविकों का सम्प्रदाय अत्यन्त प्रतिष्ठित था। इसके अनुयायियों की संख्या महावीर से भी अधिक थी। सर्वसाधारण के मानस पर नियतिवाद का काफी प्रभाव था। नन्दी सूत्र में दृष्टिवाद के 88 सूत्रों या प्रवादों का वर्णन है। उनमें से 22 का सम्बन्ध आजीविकों के साथ है और 22 का त्रैराशिकों के साथ / अभयदेवसूरि के मतानुसार त्रैराशिक गोशालक के अनुयायी थे। अशोक की धर्मलिपि में आजीविकों का तीन बार उल्लेख आया है। उसके पौत्र दशरथ ने नागार्जुनी तथा बाराबर की पहाड़ियों में उनके निवास के लिए गुफाएं प्रदान की ' श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 376 | परिशिष्ट
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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