________________ महावीर और गोशालक का परस्पर सम्बन्ध भगवती सूत्र में गोशालक का वर्णन नीचे लिखें अनुसार किया गया है—वह शंखवण नाम की बस्ती में एक ब्राह्मण की गोशाला में उत्पन्न हुआ था। उसके पिता का नाम मंखलि था। मंख का अर्थ है परिव्राजक / गोशालक का पिता हाथ में एक चित्र लेकर घूमा करता था और उसे दिखाकर भिक्षा मांगता था। इसीलिए उसका नाम मंखलि पड़ गया / * घूमते हुए वह एक बार संखवण आया और एक ब्राह्मण की गोशाला में ठहर गया। वहीं पर उसकी पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। गोशाला में उत्पन्न होने के कारण उसका नाम गोशालक पड़ गया। बड़ा होने पर गोशालक भी परिव्राजक बन गया और भिक्षा वृत्ति करने लगा। एक बार वह राजगृह में आया और जुलाहे की तन्तुशाला (खड्डी या कपड़ा बुनने का स्थान) में ठहर गया। भगवान् महावीर भी उस समय वहां ठहरे हुए थे। गोशालक ने महावीर के प्रति होने वाले पूजा-सत्कार को देखा और उनका शिष्य बन गया। एक बार शरत् काल में जब वृष्टि नहीं हो रही थी, भगवान् महावीर गोशालक के साथ सिद्धार्थ ग्राम से कूर्म ग्राम की ओर जा रहे थे। मार्ग में एक पत्र-पुष्पयुक्त तिल का पौधा था। उसको देखकर गोशालक ने पूछा-भगवन्! यह तिल का पौधा फलवान होगा या नहीं! पौधे पर लगे सात फूलों के जीव मरकर कहां उत्पन्न होंगे? भगवान ने उत्तर दिया-गोशालक! यह तिल का पौधा फलवान् होगा तथा ये सात तिल पुष्प के जीव मरकर इसी पौधे की एक फली में सात तिल होंगे। वे दोनों कूर्म ग्राम में पहुंचे तो वैशम्पायन नाम के तपस्वी को देखा। वह ग्रीष्म ऋतु के प्रचण्ड सूर्य में आतापना ले रहा था। हाथ ऊंचे उठा रखे थे और सिर पीछे की ओर झुका रखा था। उसका सिर तथा शरीर जुओं से भरा था। उसे देखकर गोशालक को हंसी आ गई। उसने तापस का मजाक उड़ाना शुरू किया। वैशम्पायन को क्रोध आ गया और उसने गोशालक को भस्म करने के लिए तेजोलेश्या का प्रयोग किया। किन्तु महावीर ने शीतललेश्या द्वारा उसे शान्त कर दिया और गोशालक के प्राण बचा लिए। गोशालक के पूछने पर उन्होंने यह भी बताया तेजोलेश्या किंस प्रकार प्राप्त की जाती है। तत्पश्चात् वे सिद्धार्थग्राम लौट आए। मार्ग में सरसों के पौधे को देखा। यहीं पर मतभेद हो जाने के कारण गोशालक महावीर से पृथक् हो गया। उसने कठोर तपस्या द्वारा तेजोलब्धि प्राप्त की और अपने आप को 'जिन' कहने लगा। क्रमशः वह आजीविक सम्प्रदाय का नेता बन गया। इस सम्प्रदाय का मुख्य केन्द्र श्रावस्ती था। वहां हालाहला नाम की आजीविकोपासिका रहती थी जो * टिप्पण–संस्कृत में पंखलि का रूपान्तर मसकरी मिलता है। मसकर का अर्थ है बांस का डण्डा। उसे हाथ में लेकर घूमने वाला परिव्राजक मसकरी कहा गया। पाणिनि ने अपनी अष्टाध्यायी में इसका यही अर्थ बताया है। देखो-सू० मसकर, मसकरिणौ वेणुपरिव्राजक्योः / श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 378 / परिशिष्ट