SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 379
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भौगोलिक स्थानों का परिचय आलभिया (पाली-आलवी, अर्धमागधी-आलभी)-भगवान् महावीर १८वें वर्षावास के लिए आलभिया आये और चुल्लशतक को श्रावक बनाया। यह नाम जनपद और नगर दोनों के लिए मिलता है। आलभिया नगर.आलभिया जनपद की राजधानी थी। इसे श्रावस्ती से 30 योजन तथा बनारस से 12 योजन बताया गया है। इससे ज्ञात होता है कि वह राजगृह तथा श्रावस्ती के बीच रही होगी। कन्निवम तथा होरनले ने इसकी उत्तरप्रदेश के उन्नाव जिले के नावाल अथवा नेवाल नामक स्थान के साथ एकता बताई है। परन्तु नन्द लालडे का मत है कि इटावा से 27 मील उत्तर पूर्व में स्थित अविवा नामक स्थान ही आलभिया है। कम्पिल्लपुर—भगवान महावीर ने अपना २१वां वर्षावास कपिल्लपुर (सं-काम्पिल्यपुर) में किया और कुण्डकौलिक को अपना अनुयायी बनाया। इस स्थान का निर्देश महाभारत, बौद्ध साहित्य तथा संस्कृत साहित्य में अनेक बार आया है। ज्ञात होता है कि उन दिनों यह विशाल नगर और व्यापार का केन्द्र रहा होगा। बौद्धों के कुम्भकारजातक में इसे उत्तर पञ्चाल की राजधानी और गङ्गा के उत्तरी तट पर बताया गया है। किन्तु महाभारत में इसे दक्षिण पञ्चाल की राजधानी बताया है। वर्तमान फर्रुखाबाद जिले में 'कम्पिल' नाम का गांव है, कहा जाता है यही प्राचीन कम्पिलपुर था। चम्पा—भगवान महावीर अपने ३०वें वर्षावास के लिए चम्पा आये और कामदेव को प्रतिबोध दिया। बिहार के भागलपुर जिले में चम्पापुर नाम का गांव है जो गंगा के तट पर बसा हुआ है। भगवान महावीर के समय वह चम्पा नाम की विशाल नगरी के रूप प्रसिद्ध था। यह नगरी अंगदेश की राजधानी थी, कहा जाता है कि वर्तमान भागलपुर जिला ही उस समय अंगंदेश के नाम से प्रसिद्ध था। पोलासपुर—भगवान महावीर अपने २१वें वर्षावास के लिए पोलासपुर में आए और सद्दालपुत्र को अपना अनुयायी बनाया। पाली साहित्य में इसका नाम पलासपुर मिलता है। पोलासपुर नगर के बाहर ही 'सहस्राम्रवन' नाम का उद्यान था। वाणियग्गाम-वाणिज्यग्राम (अ.१सू.३) भगवान् महावीर अपने १५वें वर्षावास के लिए वाणिज्यग्राम आये और गाथापति आनन्द को श्रावक धर्म में दीक्षित किया। यह चेटक की राजधानी वैशाली का उपनगर था और उसके पास ही बसा हुआ था, मुख्यतया व्यापार का केन्द्र था। वर्तमान में इसका नाम 'बानिया गांव' है और यह बसाढ़ (प्राचीन वैशाली) के पास बसा हुआ है। श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 374 / परिशिष्ट
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy