SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 377
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्थ है उस समय सम्पत्ति के तीन विभाग किए जाते थे और प्रत्येक में समान रूप से अर्थ का विनियोग किया जाता था। जितना व्यापार में लगाया जाता था उतना ही कोष में भी रखा जाता था, जिसका व्यापार में क्षति या संकट के समय उपयोग हो सके। इससे तत्कालीन गृहस्थों की दूरदर्शिता प्रकट होती है। ____ उस समय सुवर्ण नाम का सिक्का प्रचलित था। शक काल में इसे दीनार कहा गया। यह शुद्ध सुवर्ण और 32 रत्ती का होता था। ___ मुद्रा के रूप में उपरोक्त धन के अतिरिक्त आनन्द के पास गोधन भी विशाल संख्या में था। यहां गो शब्द का अर्थ केवल गाय नहीं है, बैल तथा अन्य पशु भी उसमें आ जाते हैं, फिर भी यह मानना पड़ता है कि उस समय गृहस्थ के काम में आने वाले मुख्य पशु गाय और बैल ही थे। गौओं से दूध, घी, मक्खन आदि पौष्टिक पदार्थ प्राप्त होते थे। महाकवि कालीदास ने राजा दिलीप के व्यक्तित्व का वर्णन करते हुए उसे वृषस्कन्ध कहा है, अर्थात् उसके कन्धे बैल के समान उभरे हुए थे। जैन, बौद्ध, एवं प्राचीन वैदिक साहित्य में बैल को अत्यन्त शुभ, भार ढोने में समर्थ तथा संकट काल में साहस न तोड़ने वाला बताया गया है। साथ ही वह अहिंसक भी होता है। कालान्तर में जब हिंसा एवं क्रूरता को क्षत्रियों का गुण माना जाने लगा तो उनकी उपमा सिंह से दी जाने लगी। आस्तिकवाद–आस्तिक और नास्तिक शब्द को लेकर अनेक प्रकार की धारणाएं प्रचलित हैं। मनु-स्मृति में आया है यो न धीत्य द्विजो वेदान्, अन्यत्र कुरुते श्रमम् / स शूद्रवत् बहिष्कार्यः, नास्तिको वेदनिंदकः।। —मनु स्मृति। अर्थात् जो ब्राह्मण वेदों को बिना पढ़े अन्यत्र परिश्रम करता है वह नास्तिक तथा वेदनिन्दक है! उसे शूद्र के समान बहिष्कृत कर देना चाहिए। मनु की दृष्टि में जो व्यक्ति वेदों में श्रद्धा नहीं रखता वह नास्तिक है। किन्तु इस दृष्टि से मीमांसा तथा वेदान्त को छोड़कर सभी दर्शनों को नास्तिक मानना होगा। पाणिनीय में आस्तिक और नास्तिक शब्द की व्युत्पत्ति के लिए नीचे लिखा सूत्र दिया है—“अस्ति नास्ति दिष्टं मतिः"। अर्थात् जिस व्यक्ति के मत में परलोक है, वह आस्तिक है। जिसके मत में नहीं है, वह नास्तिक है। और जो दिष्ट अर्थात् भाग्य को मानता है वह दैष्टिक है। कठोपनिषद् इन शब्दों की व्याख्या मरने के बाद आत्मा के अस्तित्व को लेकर की गई है। जो लोग मृत्यु के पश्चात् आत्मा का अस्तित्व मानते हैं वे आस्तिक हैं और जो नहीं मानते वे नास्तिक हैं। श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 372 / परिशिष्ट
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy