________________ 18. माहुर माधुर-गुड़ चीनी आदि भोजन मीठा बनाने वाली वस्तुएं / 16. जेमण दही, बड़े, पकोड़े, पापड़ आदि भोजनोपरान्त खाई जाने वाली वस्तुएं। 20. पाणे—पानीय-कुआं, नदी, सरोवर, बादलों आदि का पानी पीने के लिए। 21. तम्बोल ताम्बूल अर्थात् पान और उसमें खाये जाने वाले मसाले / अवधिज्ञान की मर्यादा . दो श्रावकों को अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ और वे विभिन्न दिशाओं में नीचे लिखे अनुसार देखने जानने लगे। पूर्वदिशा-लवणसमुद्र में पांच सौ योजन तक। इसी प्रकार दक्षिण और पश्चिम में। उत्तरदिशा-चुल्ल हिमवान् पर्वत तक / ऊर्ध्वदिशा—सौधर्म देवलोक में सौधर्म कल्प विमान तक। अधोदिशा प्रथम रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक में लोलुपाच्युत नामक स्थान तक जहां चौरासी हजार वर्ष की आयु वाले नारकीय जीव रहते हैं। महाशतक ने तीनों दिशाओं में हजार-हजार योजन तक अवधिज्ञान से जाना और देखा। ग्यारह प्रतिमाएं प्रत्येक श्रावक ने ग्यारह प्रतिमाएं स्वीकार की थीं। इनका निरूपण अन्यत्र किया जा चुका है। उनके नाम नीचे लिखे अनुसार हैं१. दर्शन 2. व्रत 3. सामायिक 4. . पौषध 5. दिवाब्रह्मचारी 6. ब्रह्मचर्य 7. सचित्त परित्याग 8. आरम्भ परित्याग 6. प्रेष्य अर्थात् नौकर आदि भेजने का परित्याग / 10. उद्दिष्ट भोजन परित्याग। 11. श्रमणभूत प्रत्येक श्रावक ने बीस वर्ष तक व्रत एवं प्रतिमाओं का पालन किया और अन्त में संलेखना द्वारा देह का परित्याग करके सौधर्म देवलोक में चार पल्योपम की आयु प्राप्त की। वहां से च्यव कर सबके सब महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होंगे और सिद्धि प्राप्त करेंगे। श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 368 / संग्रह-गाथाएं