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________________ मूलम् तए णं से महासयए समणोवासए भगवं गोयमं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्ठ जाव हियए भगवं गोयमं वंदइ नमसइ // 263 // छाया–ततः खलु स महाशतकः श्रमणोपासको भगवन्तं गौतममायान्तं पश्यति, दृष्ट्वा हृष्टयावद् हृदयो भगवन्तं गौतमं वन्दते नमस्यति / शब्दार्थ तए णं से महासयए समणोवासए तदनन्तर महाशतक श्रमणोपासक ने, भगवं गोयमं एज्जमाणं पासइ–भगवान् गौतम को आते हुए देखा, पासित्ता देखकर, हट्ठ जाव हियए हृदय में हृष्ट-तुष्ट होकर, भगवं गोयमं—भगवान् गौतम को, वंदइ नमसइ-वन्दना नमस्कार किया। भावार्थ महाशतक भगवान् गौतम को आते देखकर प्रसन्न और सन्तुष्ट हुआ। और उन्हें वन्दना नमस्कार किया। मूलम् तए णं से भगवं गोयमे महासययं समणोवासयं एवं वयासी–“एवं खलु देवाणुप्पिया! समणे भगवं महावीरे एवमाइक्खइ, भासइ, पण्णवेइ, परूवेई"_"नो खलु कप्पइ, देवाणुप्पिया! समणोवासगस्स अपच्छिम जाव वागरित्तए / “तुमे णं देवाणुप्पिया! रेवई गाहावइणी संतेहिं जाव वागरिआ," तं णं तुमं देवाणुप्पिया! एयस्स ठाणस्स आलोएहि जाव पडिवज्जाहि" || 264 // छाया-ततः खलु स भगवान् गौतमो महाशतक श्रमणोपासकमेवमवादीत्– “एवं खलु देवानुप्रिय! श्रमणो भगवान् महावीर एवमाख्याति, भाषते, प्रज्ञापयति, प्ररूपयति—“नो खलु कल्पते देवानुप्रिय ! श्रमणोपासकस्यापश्चिम यावद् व्याकर्तुम्, त्वया खलु देवानुप्रिय ! रेवती गाथापली सद्भिर्यावद् व्याकृता" तत्खलु त्वं देवानुप्रिय! एतस्य स्थानस्याऽऽलोचय यावत् प्रतिपद्यस्व / " शब्दार्थ तए णं से भगवं गोयमे तदनन्तर भगवान् गौतम, महासययं समणोवासयं एवं वयासी–महाशतक श्रमणोपासक से इस प्रकार बोले, एवं खलु देवाणुप्पिया! हे देवानुप्रिय! इस प्रकार, समणे भगवं महावीरे-श्रमण भगवान्- महावीर ने, एवमाइक्खइ—ऐसा कहा है, भासइ–भाषण किया है, पण्णवेइ–प्रतिपादन किया है, परवेइ—प्ररूपित किया है, नो खलु कप्पइ देवाणुप्पिया! कि हे देवानुप्रिय! नहीं कल्पता, समणोवासगस्स–श्रमणोपासक को, अपच्छिम जाव वागरित्तए—अंतिम संलेखनाधारी को यावत् ऐसा कहना, तुमे णं तुमने, देवाणुप्पिया! हे देवानुप्रिय ! रेवई गाहावइणी रेवती गाथापत्नी को, संतेहिं जाव वागरिआ तथ्यरूप वचन कहे, तं णं तुमं देवाणुप्पिया! अतः हे देवानुप्रिय! तुम, एयस्स ठाणस्स आलोएहि—इस स्थान की आलोचना करो, जाव पडिवज्जाहि—यावत् प्रायश्चित्त अङ्गीकार करो। | श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 353 / महाशतक उपासक, अष्टम अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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