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________________ किया और न उस पर ध्यान दिया, अणाढायमाणे अपरियाणमाणे परन्तु सत्कार तथा ध्यान के बिना, तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ–मौन रहकर धर्मानुष्ठान में लगा रहा। भावार्थ महाशतक गाथापति ने रेवती की कुचेष्टाओं और बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया और मौन रहकर धर्मध्यान-धर्मानुष्ठान में लगा रहा। मूलम् तए णं सा रेवई गाहावइणी महासययं समणोवासयं दोच्चंपि तच्चंपि एवं वयासी—“हं भो" ! तं चेव भणइ, सो वि तहेव जाव अणाढायमाणे अपरियाणमाणे विहरइ // 248 // - छाया ततः खलु सा रेवती गाथापली महाशतकं श्रमणोपासकं द्वितीयमपि तृतीयमप्येवमवादीत्— “हंभोः" / तथैव भणति / सोऽपि तथैव यावद् अनाद्रियमाणोऽपरिजानन् विहरति / शब्दार्थ तए णं सा रेवई गाहावइणी–तदनन्तर वह रेवती गाथापली, महासययं समणोवासयं महाशतक श्रमणोपासक के प्रति, दोच्चंपि तच्चंपि-द्वितीय तथा तृतीय बार भी, एवं वयासी—इस बार बोली-हं भो! तं चेव भणइ हे महाशतक! पहले की भांति कहा, सो वि—वह भी, तहेव जाव—उसी प्रकार यावत्, अणाढायमाणे अपरियाण माणे विहरइ–बिना आदर-सत्कार किए ध्यान में स्थिर रहा। भावार्थ तब गाथापत्नी रेवती ने महाशतक श्रावक से दूसरी तथा तीसरी बार भी वही बात कही, किन्तु महाशतक पहले की भांति ध्यान में स्थिर रहा / रेवती का निराश होकर लौटनामूलम् तए णं सा रेवई गाहावइणी महासयएणं समणोवासएणं अणाढाइज्जमाणी अपरियाणिज्जमाणी जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया // 246 // छाया ततः खलु सा रेवती गाथापली महाशतकेन श्रमणोपासकेनाऽनाद्रियमाणा अपरिज्ञायमाना यस्या एव दिशं प्रादुर्भूता तामेव दिशं प्रतिगता। शब्दार्थ तए णं सा रेवई गाहावइणी तदनन्तर वह रेवती गाथापली, महासयएणं समणोवासएणं महाशतक श्रमणोपासक के द्वारा, अणाढाइज्जमाणी अपरियाणिज्जमाणी– अनादृत तथा तिरस्कृत होकर, जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया जिस दिशा से वह आई थी उसी दिशा में चली गई। ___ भावार्थ रेवती गाथापली तिरस्कृत होकर जहां से आई थी उधर ही वापिस चली गई। | श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 341 / महाशतक उपासक, अष्टम अध्ययन /
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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