________________ निव्वाणतीराभिमुहे निर्वाणरूपी किनारे पर, साहत्थिं संपावेइ—अपने हाथ से पहुँचाते हैं, से तेणठेणं देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइ हे देवानुप्रिय ! इसी अभिप्राय से यह कहा जाता है कि, समणे भगवं महावीरे महानिज्जामए–श्रमण भगवान महावीर, महानिर्यामक–महाकर्णधार हैं। भावार्थ मंखलिपुत्र गोशालक ने श्रमणोपासक सद्दालपुत्र से कहा कि श्रमण भगवान् महावीर महामाहन हैं।" सद्दालपुत्र—'हे देवानुप्रिय ! किस अभिप्राय से श्रमण भगवान महावीर महामाहन हैं ?" गोशालक—“क्योंकि भगवान महावीर अप्रतिहत ज्ञान-दर्शन के धारक हैं। महित, पूजित यावत् तथ्य अर्थात् सफल कर्मसम्पदा के स्वामी हैं। इसीलिए मैं कहता हूँ कि श्रमण भगवान महावीर महामाहन हैं।" गोशालक—“क्या यहां महागोप आए थे ?" सद्दालपुत्र-“हे देवानुप्रिय ! महागोप कौन हैं ? गोशालक-"श्रमण भगवान महावीर महागोप हैं। सद्दालपुत्र तुम यह किस अभिप्राय से कहते हो कि श्रमण भगवान महावीर महागोप हैं ?" गोशालक-"श्रमण भगवान महावीर संसार अटवी में नष्ट होते हुए, भटकते हुए, विविध कष्टों से पीड़ित होते हुए, विनष्ट होते हुए, छिन्न-भिन्न, क्षत् एवं विक्षत किए जाते हुए, प्राणियों को धर्मरूपी दण्ड लेकर रक्षा करते हैं, बचाते हैं और अपने हाथ से निर्वाणरूपी विशाल बाड़े में पहुँचाते हैं। इसीलिए मैं कहता हूँ कि श्रमण भगवान महावीर महागोप हैं।" गोशालक—“सद्दालपुत्र ! क्या यहां महासार्थवाह आए थे ?' सद्दालपुत्र—“हे देवानुप्रिय ! महासार्थवाह कौन हैं ?" . गोशालक—'श्रमण भगवान महावीर महासार्थवाह हैं ?" सद्दालपुत्र—“आप यह किस अभिप्राय से कहते हैं कि श्रमण भगवान महावीर महासार्थवाह हैं ?" गोशालक—"श्रमण भगवान महावीर संसार अटवी में भटकते हुए विविध प्रकार के कष्टों से पीड़ित क्षत-विक्षत, छिन्न-भिन्न प्राणियों को धर्मरूपी मार्ग पर पहुंचाते हैं और निर्वाणरूपी नगर की ओर ले जाते हैं। इसी अभिप्राय से मैं कहता हूँ कि श्रमण भगवान महावीर महासार्थवाह हैं।" गोशालक—“क्या यहां महाधर्मकथी आए थे ?" सद्दालपुत्र—हे देवानुप्रिय ! महाधर्मकथी कौन हैं ?" श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 316 / सद्दालपुत्र उपासक, सप्तम अध्ययन