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________________ शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, समणे भगवं महावीरे—श्रमण भगवान् महावीर ने, कामदेवस्स समणोवासयस्स—कामदेव श्रमणोपासक, तीसे य—और परिषद् को धर्मोपदेश किया, जाव धम्मकहा सम्मत्ता यावत् धर्म कथा समाप्त हुई। भावार्थ तदनन्तर श्रमण भगवान् महावीर ने कामदेव श्रमणोपासक और उस महती परिषद् को धर्मोपदेश किया, यावत्-धर्मोपदेश समाप्त हुआ। भगवान् महावीर द्वारा कामदेव की प्रशंसा___ मूलम् “कामदेवा" इ समणे भगवं महावीरे कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी_“से नूणं, कामदेवा! तुब्भं पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतिए पाउब्भूए / तएणं से देवे एगं महं दिव्व पिसाय-रूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता आसुरुत्ते 4 एगं महं नीलुप्पल जाव असिं गहाय तुमं एवं वयासी हंभो कामदेवा! जाव जीवियाओ ववरोविज्जसिं, तं तुमं. तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरसि / एवं वण्णग-रहिया तिष्णि वि उवसग्गा तहेव पडिउच्चारेयव्वा जाव देवो पडिगओ / “से नूणं कामदेवा! अढे समठे?" 'हंता, अत्थि' // 117 // ___छाया—'कामदेव!' इति श्रमणो भगवान् महावीरः कामदेवं श्रमणोपासक-मेवमवादीत्—“अथ नूनं कामदेव! तव पूर्वरात्रापररात्रकालसमये एको देवोऽन्तिके प्रादुर्भूतः ततः खुल स देव एकं महद्दिव्यं पिशाचरूपं विकुरुते, विकृत्य आशुरुप्तः 4 एकं महान्तं नीलोत्पल-यावदसिं गृहीत्वा त्वामेवमवादीत्"हंभोः कामदेव! यावत् जीविताद् व्यपरोपयिष्यसे" ततस्त्वं तेन देवेनैवमुक्तः सन् अभीतो यावद् विहरसि / " एवं वर्णक रहितास्त्रयोऽप्युपसर्गास्तथैवोच्चारितव्या यावद् देवः प्रतिगतः।” “स नूनं कामदेव! अर्थः समर्थः?” “हन्त! अस्ति / " शब्दार्थ कामदेवा इ हे कामदेव! समणे भगवं महावीरे श्रमण भगवान् महावीर ने, कामदेवं समणोवासयं कामदेव श्रमणोपासक को, एवं वयासी—इस प्रकार कहा से नूणं कामदेवा हे कामदेव! निश्चित ही, तुब्मं तुम्हारे पास, पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि—मध्य-रात्रि. के समय, एगे देवे—एक देव, अंतिए पाउड्भूए प्रकट हुआ था, तएणं तदनन्तर, से देवे—उस देव ने, एगं महं दिव्वं पिसायरूवं—एक विकराल पिशाचरूप की, विउव्वइ–विक्रिया की, विउव्वित्ता—विक्रिया कर, आसुरुत्ते ४—आशुरुप्त-अत्यन्त क्रुद्ध होकर, एगं महं—एक महान्, नीलुप्पल-नीलोत्पल के समान, जाव यावत्, असिं गहाय-तलवार लेकर, तुमं एवं वयासी—तुम्हें इस प्रकार कहने लगा, हं भो कामदेवा! अरे कामदेव!, जाव—यावत्, जीवियाओ ववरोविज्जसि—जीवन से रहित कर दिया जाएगा, तं तुम तो तू, तेणं देवेणं—उस देव द्वारा, एवं वुत्ते समाणे इस प्रकार कहे जाने पर भी, श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 228 / कामदेव उपासक, द्वितीय अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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