________________ भावार्थ -श्री सुधर्मा स्वामी जी ने उत्तर दिया हे जम्बू ! उस काल उस समय चम्पा नामक नगरी थी, वहाँ पूर्णभद्र चैत्य और जितशत्रु राजा था। वहीं कामदेव गाथापति था और उसकी भद्रा नाम वाली भार्या थी। छह करोड़ हिरण्य उसके खजाने में थे। छह करोड़ व्यापार में लगे थे। छह करोड़ गृह, तत्सम्बन्धी उपकरण, वस्त्र, रथ, पोत आदि में लगे हुए थे। छह व्रज थे, प्रत्येक व्रज में दस हजार गाएं थीं, अर्थात् साठ हजार पशुधन था। भगवान् महावीर पधारे और उनका समवसरण हुआ। कामदेव भी आनन्द की तरह घर से निकला और श्रमण भगवान् महावीर के पास आया। उसी प्रकार श्रावकधर्म स्वीकार किया। यह सब वृत्तान्त आनन्द के समान समझना चाहिए यावत् कामदेव भी ज्येष्ठ पुत्र, मित्रवर्ग तथा जाति बन्धुओं से पूछकर पौषधशाला में गया। वहाँ जाकर आनन्द की तरह श्रमण भगवान् महावीर द्वारा उपदिष्ट धर्मप्रज्ञप्ति अङ्गीकार करके विचरने लगा। ___टीका प्रस्तुत सूत्र में कामदेव गाथापति का वर्णन है, व्रत ग्रहण से लेकर पौषधशाला में जाकर निरन्तर धर्मानुष्ठान तक की घटनाएँ इसकी भी आनन्द के समान हैं / - मिथ्यादृष्टि देव का उपसर्ग- मूलम् तए णं तस्स कामदेवस्स समणोवासगस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे मायी मिच्छ-दिट्ठी अंतियं पाउब्भूए / / 63 // छाया ततः खलु तस्य कामदेवस्य श्रमणोपासकस्य पूर्वरात्रापरत्रकालसमये एको देवो मायी मिथ्यादृष्टिरन्तिकं प्रादुरभूत् / शब्दार्थ-तए णं तदनन्तर, तस्स कामदेवस्स समणोवासगस्स—उस काममदेव श्रमणोपासक के, अंतियं समीप, पुव्वरत्तावरत्तकाल समयंसि—मध्य रात्रि में, एगे देवे-मायी मिच्छदिट्ठी एक देव जो कि मायावी और मिथ्या दृष्टि था, पाउब्भूए प्रकट हुआ। ___भावार्थ तदनन्तर मध्यरात्रि में कामदेव श्रमणोपासक के समीप एक मायावी और मिथ्यादृष्टि देव प्रकट हुआ। टीका–धर्मनिष्ठ पुरुषों को साधना से विचलित करने तथा उनके अनुष्ठान में विघ्न डालने के लिए दुष्ट प्रकृति वाले यक्ष-राक्षस आदि का प्रकट होना भारत की समस्त परम्पराओं में मिलता है। वैदिक परम्परा में ऋषियों द्वारा किए गए यज्ञों में विघ्न डालने के लिए राक्षस आते हैं। इसी प्रकार विविध व्यक्तियों द्वारा की जाने वाली तपस्या में भी यक्ष, राक्षस, असुर आदि विघ्न डालते हैं। इसी प्रकार जैन परम्परा में भी इनका वर्णन मिलता है। प्रस्तुत पाठ में देवता को मिथ्यात्वी अर्थात् मिथ्यादृष्टि बताया गया है। इसका अर्थ है कि वह जैन धर्म का विरोधी था। जैन शास्त्रों में बताया गया है कि बहुत से तापस जैन धर्म न मानने पर भी श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 166 / कामदेव उपासक, द्वितीय अध्ययन /