________________ छाया तदनन्तरं च खलु उपभोग-परिभोगो द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा भोजनतः कर्मतश्च, तत्र खलु भोजनतः श्रमणोपासकेन पंचातिचारा ज्ञातव्या न समाचरितव्याः, तद्यथा—सचित्ताहारः, सचित्तप्रतिबद्धाहारः, अपक्वौषधिभक्षणता, दुष्पक्वौषधिभक्षणता, तुच्छौषधिभक्षणता। कर्मतः खलु श्रमणोपासकेन पञ्चदश कर्मादानानि ज्ञातव्यानि न समाचरितव्यानि तद्यथा—१. अंगारकर्म, 2. वनकर्म, 3. शाकटिककर्म, 4. भाटीकर्म, 5. स्फोटीकर्म, 6. दन्त वाणिज्यम्, 7. लाक्षा वाणिज्यम्, 8. रस वाणिज्यम्, 6. विष वाणिज्यम्, 10. केश वाणिज्यम्, 11. यंत्रपीडन कर्म, 12. निलाञ्छन कर्म, 13. दावाग्निदापनम्, 14. सरोह्रदतड़ाग शोषणम्, 15. असतीजन पोषणम् / शब्दार्थ तयाणंतरं च णं—इसके अनन्तर, उवभोग परिभोगे—उपभोग परिभोग, दुविहे दो प्रकार का, पण्णत्ते कहा गया है, तं जहा—वह इस प्रकार है, भोयणओ य कम्मओ य–भोजन से और कर्म से, तत्थ णं—उनमें, भोयणओ—भोजन से अर्थात् भोजन सम्बन्धी उपभोग परिभोग के, पंच अइयारा—पाँच अतिचार, समणोवासएणं श्रमणोपासक को, जाणियव्वा—जानने चाहिएं, न समायरियव्वा परन्तु आचरण न करने चाहिएं, तं जहा वे इस प्रकार हैं—सचित्ताहारे सचित्ताहार, सचित्तपडिबद्धाहारे—सचित्तप्रतिबद्धाहार, अप्पउलिओसहिभक्खणया अपक्व ओषधि-वनस्पति का खाना, दुप्पउलिओसहि भक्खणया-दुष्पक्व ओषधि का खाना, तुच्छोसहिभक्खणया तुच्छ ओषधि का खाना, कम्मओ णं-कर्म . से, समणोवासएणं श्रमणोपासक को, पणरस—पन्द्रह, कम्मादाणाई कर्मादान, जाणियव्वाइं—जानने चाहिएं, न समायरियव्वाइं—आचरण न करने चाहिएं, तं जहा–वे इस प्रकार हैं इंगालकम्मे—अंगारकर्म, वणकम्मे वनकर्म, साडीकम्मे शाकटिककर्म, भाडीकम्मे भाटीकर्म, फोडीकम्मे—स्फोटीकर्म, दंतवाणिज्जे दन्त वाणिज्य, लक्खवाणिज्जे लाक्ष वाणिज्य, रसवाणिज्जेरस वाणिज्य, विसवाणिज्जे विष वाणिज्य, केसवाणिज्जे केश वाणिज्य, जंतपीलणकम्मेयन्त्रपीडन कर्म, निल्लंछणकम्मे निर्लाञ्छन कर्म, दवग्गिदावणया दावाग्निदापन, सरदहतलाय सोसणया सरोह्रदतडाग शोषण, असईजणपोसणया असतीजन पोषण / भावार्थ तदनन्तर उपभोग-परिभोग-व्रत का निरूपण है, वह दो प्रकार का है—(१) भोजन से और (2) कर्म से। प्रथम भोजन सम्बन्धी उपभोग परिभोग परिमाण व्रत के पाँच अतिचार हैं—(१) सचित्ताहार–सचित्त अर्थात् सजीव वस्तु खाना / (2) सचित्त प्रतिबद्धाहार–सजीव के साथ सटी हुई वस्तु खाना / (3) अपक्वौषधिभक्षणता—कच्ची वनस्पति अर्थात् फल शाक आदि खाना। (4) दुष्पक्वौषधिभक्षणता पूरी न पकी हुई वनस्पति खाना। (5) तुच्छौषधिभक्षणता अर्थात् कच्ची मूंगफली आदि खाना। श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 123 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन