________________ (56) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध मुझसे पाली नहीं जायेगी। तो अब प्रभात के समय भगवान से पूछ कर मैं घर चला जाऊँगा। अभी कुछ बिगड़ा नहीं है। यह सोच कर प्रभात के समय वह रजोहरण-मुहपत्ती ले कर भगवान के पास आया। तब भगवान ने मधुर वचनों से कहा कि हे मेघर्षि ! आज रात को तुम से साधु के पैर सहन नहीं हुए, तुम्हें नींद नहीं आयी। इससे तुमने मन में अशुभ ध्यान ध्याया कि प्रभात के समय मैं घर जाऊँगा। क्या यह बात सत्य है? तब मेघकुमार ने कहा कि हाँ महाराज ! बिल्कुल सत्य है। इस पर भगवान ने कहा कि हे मेघकुमार ! तुम्हें यह योग्य नहीं है। क्योंकि नरकतिर्यंच के दुःख तो इस जीव ने अनन्त बार देखे हैं। उनके आगे यह दुःख किस हिसाब में है? ऐसा कौन मूर्ख है, जो चक्रवर्ती की ऋद्धि छोड़ कर दासता की वाँछा करे? इसलिए मर जाना अच्छा है, पर चारित्रभंग करना अच्छा नहीं है। यह चारित्र का कष्ट ज्ञानसहित है तथा यह आगे भी बहुत फल देने वाला होगा। तूने पूर्व भव में भी धर्म के लिए बहुत अकाम कष्ट भोगे हैं और वे भी महाफलदायक हुए हैं। वे पूर्व भव अब तू सुन। इस भव से पूर्व तीसरे भव में वैताढ्य पर्वत के पास छह दन्तोशल सहित श्वेत वर्ण वाला, एक हजार हथिनियों का नायक सुमेरुप्रभ नाम का तू हाथी था। वहाँ एक बार दावानल लगने से भयभीत हो कर तू वहाँ से भागा। फिर तू प्यास से पीड़ित हो कर एक सरोवर में जहाँ कीचड़ ज्यादा और पानी कम था; मार्ग को न जानने के कारण पानी पीने के लिए पैठा। वहाँ कीचड़ में फँस जाने के कारण तू बाहर न निकल सका। इतने में पूर्वजन्म का बैरी एक अन्य हाथी वहाँ आया। उसने दंतोशल के प्रहार से तुझे आहत किया। इससे सात दिन तक महावेदना सहन कर एक सौ बीस वर्ष की आयु पूर्ण कर के मृत्यु प्राप्त कर विंध्याचल पर्वत की भूमिका में तू चार दंतोशल वाला लाल रंग का सात सौ हथिनियों का नायक ऐसा मेरुप्रभ नामक हाथी हुआ। वहाँ भी एक बार दावानल लगा। उसे देख कर तुझे जातिस्मरण ज्ञान हुआ। इससे तूने अपना पूर्वभव देखा। फिर दावानल का भय मिटाने के लिए तूने चार कोस तक भूमि का मंडल बना कर शुद्ध किया। उसमें तू तृण-बेल तक रखता नहीं था। ऊगने