________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (41) कोंठ जमीन पर गिर गये। फिर वह बोला कि इस कोंठ को जमीन पर गिराने में जितना समय लगा है; उतना ही समय मुझे शत्रु को मारने में लगता है, पर लोकापवाद के भय से मैं यह काम नहीं करता। यह कह कर उसने संभूतिविजय मुनि के पास दीक्षा ले कर मासक्षमणादिक बहुत तप किया। ___एक बार विश्वभूति मुनि विहार करते करते मथुरा नगरी में आये। वहाँ मासक्षमण के पारणे के लिए गोचरी जाते वक्त किसी नूतन प्रसूता गाय ने उन्हें सींग मार दिया। इससे वे भूमि पर गिर गये। उस अवसर पर उनके चाचा का बेटा विशाखनन्दी भी उसी गाँव में अपनी ससुराल आया हुआ था। उसने गोख में बैठे बैठे विश्वभूति को जमीन पर गिरते देखा। उस समय वह हास्यपूर्वक बोला कि अरे विश्वभूति! जिस बल-पराक्रम से तुमने एक मुक्के में सब कोंठ गिरा दिये थे; वह तुम्हारा सारा बल अब कहाँ जाता रहा? यह वचन सुन कर मुनि ने उसे ऊँची नजर कर के देखा। फिर मन में अहंकार ला कर कहा कि अरे ! अब भी हँसी उड़ाता है? देख, अब भी मेरा बल कितना है? यह कह कर उन्होंने उस गाय को सींग से पकड़ कर आकाश में घुमा कर भूमि पर रख दिया। फिर वे विशाखनंदी से कहने लगे कि अरे! तू तो समझता होगा कि इसका बल खत्म हो गया होगा, पर मेरा बल खत्म नहीं हुआ है। फिर कहने लगे कि यदि मेरी तपस्या का कोई फल हो, तो अगले भव में अधिक बलवान हो कर मैं तुझे मारने वाला होऊँ। ऐसा निदान कर के एक कोड़ी वर्ष तक चारित्र पालन कर अन्त में अनशन पूर्वक मृत्यु प्राप्त कर के / / 16 / / सतरहवें भव में महाशुक्र नामक सातवें देवलोक में पूर्ण आयु वाले देवरूप में उत्पन्न हुए।।१७।। वहाँ से च्यव कर अठारहवें भव में- पोतनपुर नगर में प्रजापति राजा की धारिणी रानी की कोख में चार स्वप्न से सूचित गौतमस्वामी का जीव पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। उसका नाम अचल रखा गया। इसी प्रजापति राजा के मृगावती नामक एक पुत्री हुई। एक दिन उसके विवाह की चिन्ता के कारण उसकी माता ने उसका श्रृंगार कर सुशोभित