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________________ (40) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध करते हुए देख कर विचार किया कि देखो तो सही, मैं तो राजा का पुत्र हूँ और यह युवराज का पुत्र है। फिर भी मैं तो मेरे पिता के इस बगीचे में कभी भी क्रीडा नहीं करता हूँ और यह युवराज का पुत्र बगीचा रोक कर बैठा है। यह अनुचित है। इसलिए अब मैं भी अपनी स्त्रियों के साथ यहाँ आ कर बगीचे में रमण करूँ, तो ही मेरा जन्म सफल है; अन्यथा मेरा जन्म व्यर्थ है। यह निश्चय कर के उसने अपने पिता से कहा कि आप विश्वभूति को बगीचे से निकाल दें, तो मैं वहाँ जा कर बगीचे में क्रीडा करूँ। तब पिता ने कहा- हे पुत्र ! मैं कोई उपाय कर के विश्वभूति को वहाँ से निकाल कर तुझे बगीचा दे दूंगा। इस प्रकार अपने पुत्र को आश्वासन दे कर फिर विश्वभूति को बगीचे से बाहर निकालने के लिए राजा ने कपट कर के एक पटह बजवाया कि सिंह नामक राजा को पकड़ने के लिए राजा चढ़ाई कर रहा है। यह ढिंढोरा सुन कर विश्वभूति ने राजा से कहा कि हे स्वामिन् ! उस बेचारे गरीब सिंह राजा पर आप क्यों चढ़ाई करते हैं? उसे तो मैं ही बाँध कर ले आऊँगा। यह कह कर लश्कर के साथ विश्वभूति ने सिंह राजा पर आक्रमण कर दिया। उसके जाने के बाद राजा ने विश्वभूति के अन्तःपुर को बगीचे से निकाल कर विशाखनंदी को बगीचा सौंप दिया। इस तरह कई दिन बाद विश्वभूति ने भी सिंह राजा को पकड़ कर ला कर राजा को सौंप दिया। तब लोग उसका बहुत यशवाद बोलने लगे। अब पुनः विश्वभूति पहले के समान अपनी स्त्रियों को साथ ले कर क्रीडा हेतु बगीचे में गया। वहाँ दरवाजे पर विशाखनंदी के सुभट बैठे थे। उन्होंने कहा कि यहाँ विशाखनंदी अपनी स्त्रियों के साथ रमण कर रहा है। इसलिए अन्य किसी को आने का हुक्म नहीं है। राजा ने उसे बगीचा दे दिया है। यह सुन कर विश्वभूति ने जान लिया कि राजा ने उसके साथ कपट किया है। इसलिए "धिक्कार हो इस संसार को' यह विचार कर वह विरक्त हो गया। फिर केवल अपना बल दिखाने के लिए उस बगीचे के द्वार के पास रहे हुए एक कोंठ के पेड़ को एक मुक्का मारा। इससे उस वृक्ष के सब
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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