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________________ (26) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध सम्मान किया। फिर वह पूर्ववत् जप-तप आदि कर के अपना जीवन-यापन करने लगा। ___ एक बार भगवान की पूजा करते वक्त उसे तंबोली नाग ने डंस लिया। इससे उसके शरीर में जहर फैल गया; पर वह शुभ ध्यान में लीन हो गया। इससे उसे केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। शासनदेव ने उसे रजोहरण-मुहपत्ती प्रमुख साधुवेश अर्पण किया। फिर शेष काल तक विहार कर के अनेक भव्य जीवों को प्रतिबोध दे कर उसने मोक्ष प्राप्त किया। नागकेतु का यह अधिकार सुन कर जो भव्य प्राणी छट्ठ-अट्ठम तप कर के, याने कि बेलातेला की तपस्या कर के श्री पर्युषण पर्व में कल्पसूत्र का श्रवण करेगा, वह शाश्वत सुख पायेगा। ___ यह कल्पसूत्र पाप-निवारक है, मनोवांछित पूर्ण करने वाला है, निकाचित चार घातीकर्मों का क्षय करने वाला है। इसलिए भव्य जीवों को प्रमाद, निद्रा तथा विकथा का त्याग कर के बेला अथवा तेला का तप कर के कल्पसूत्र सुनना चाहिये। श्री जीवाभिगम सत्र में कहा है कि पर्युषण पर्व के आगमन पर सब देवेन्द्र मिल कर श्री नंदीश्वर द्वीप जा कर वहाँ अट्ठाई महोत्सव करते हैं; वैसे ही यहाँ श्रावक-श्राविकाओं को भी अट्ठाई महोत्सव करना चाहिये। इस विधि से यदि कल्पसूत्र श्रवण करे, तो बहुत लाभदायक होता है। यह कल्पसूत्र श्री महावीरस्वामी के छठे पाट पर होने वाले युगप्रधान श्री भद्रबाहुस्वामी ने चौदह पूर्वान्तर्गत नौवें प्रत्याख्यानप्रवाद नामक पूर्व के दशाश्रुतस्कंध सूत्र के आठवें अध्ययन के रूप में रचा है। जैसे दही का सार घी है; वैसे ही सब शास्त्रों का सारभूत यह सूत्र है। प्रसंगप्राप्त चौदह पूर्वो का मान कहते हैं प्रथम उत्पाद पूर्व-हौदे सहित एक हाथी जितनी स्याही के ढेर से लिखा जा सकता है। दूसरा अग्रायणी पूर्व दो हाथी जितनी स्याही से, तीसरा वीर्यप्रवाद पूर्व चार हाथी जितनी स्याही से, चौथा अस्तिप्रवाद पूर्व आठ हाथी जितनी स्याही से, पाँचवाँ ज्ञानप्रवाद पूर्व सोलह हाथी जितनी स्याही से, छठा सत्यप्रवाद पूर्व बत्तीस हाथी जितनी स्याही से, और सातवाँ आत्मप्रवाद पूर्व चौसठ हाथी जितनी स्याही से
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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