________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (403) - भद्रबाहु के काश्यप गोत्रीय चार स्थविर शिष्य हुए- 1. गोदास, 2. अग्निदत्त, 3. यज्ञदत्त और 4. सोमदत्त। ___स्थविर गोदास से गोदास गण निकला और उसकी 1. तामलित्तिया, 2. कोड़िवरसीया, 3. पंडुबद्धणीया और 4. दासी खब्बडिया ये चार शाखाएँ हुईं। ___ संभूतिविजय के बारह शिष्य हुए- 1. नन्दनभद्र, 2. उपनन्दनभद्र, 3. तीसभद्र, 4. यशोभद्र, 5. सुमनोभद्र, 6. मणिभद्र, 7. पूर्णभद्र, 8. स्थूलिभद्र, 9. ऋजुमति, 10. जंबू, 11. दीर्घभद्र और 12. पांडुभद्र तथा 1. यक्षा, 2. यक्षदिन्ना, 3. भूता, 4. भूतदिन्ना, 5. सेना, 6. वेना और 7. रेना ये सात आर्यिकाएँ हुईं। ___गौतम गोत्रीय स्थूलिभद्र के दो शिष्य हुए- एलापत्य गोत्रीय आर्य महागिरि और वासिष्ठ गोत्रीय आर्य सुहस्ति। आर्य महागिरि के आठ शिष्य हुए- 1. स्थविर उत्तर, 2. बलिस्सह, 3. धनर्द्धि, 4. श्रीभद्र, 5. कौडिन्य, 6. नाग, 7. नागमित्र, 8. कौशिक गोत्रीय षडुलूक रोहगुप्त। स्थविर रोहगुप्त से त्रैराशिकी शाखा निकली और उत्तर-बलिस्सह से उत्तरबलिस्सह गण निकला। इसकी 1. कोसंबिया, 2. सोइत्तिया, 3. कोडवाणी और 4. चन्दनागरी ये चार शाखाएँ हुईं। - आर्य सुहस्ति के बारह शिष्य हुए- 1. आर्य रोहण, 2. भद्रयश, 3. मेघ, 4. गणिक कामर्द्धि, 5. सुस्थित, 6. सुप्रतिबद्ध, 7. रक्षित, 8. रोहगप्त, 9. ऋषिगुप्त, 10. श्रीगुप्त, 11. गणिब्रह्मा और 12. गणिसोम। ___ काश्यप गोत्रीय आर्य रोहण से उद्देह गण निकला। उसकी 1. उदुंबरिज्जिया, 2. मासपूरिया, 3. मइपत्तिया और 4. पुन्नपत्तिया ये चार शाखाएँ हुईं तथा 1. नागभूत, 2. सोमभूतिक, 3. उल्लग, 4. हस्तलीय, 5. नन्दिज्ज और 6. पारिहासक ये छह कुल हुए। हारियस गोत्रीय श्रीगुप्त से चारण गण निकला। उसकी 1. हारिय