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________________ (402) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध किया कि अपन सब इस राँधे हुए अनाज में जहर मिला कर खा लेंगे और फिर अनशन कर लेंगे। यह सोच कर वे हंडी में जहर डालने के लिए तैयार हुए। इतने में वज्रसेनसूरि आये। उन्होंने यह कृत्य देख कर पूछा कि तुम लोग मरने का उपाय क्यों कर रहे हो? तब सेठानी ने कहा कि हमारे पास धन तो बहुत है, पर खाने के लिए अनाज नहीं मिलता। तब वज्रसेनसूरि ने कहा कि गुरु ने कहा है कि जिस दिन लाख द्रव्य की हंडी चढ़ेगी, उसके दूसरे दिन सुकाल होगा। यह सुन कर सेठानी को भी पूज्य के वचन की प्रतीति होने से उसने कहा कि यदि सुकाल हो जायेगा, तो ये मेरे चार पुत्र मैं आपको दे दूंगी। इन चारों को आप दीक्षा देना। ऐसी प्रतिज्ञा कर के . उसने हंडी में जहर डालना बन्द कर दिया। ____ फिर बारह प्रहर बीतने के बाद कई जहाज जो तूफानी हवा के योग से दूर निकल गये थे, वे अच्छी हवा चलने से वापस आये। उनमें जुवार भरी हुई थी। लोगों को वह जुवार मिली। सुकाल हुआ। इस धान्य से युगोद्धार हुआ, इसलिए इसका नाम युगंधरी पड़ा। इसे लोकभाषा में ज्वार भी कहते हैं। फिर सेठ-सेठानी ने एक नागेन्द्र, दूसरा चन्द्र, तीसरा निवृत्ति और चौथा विद्याधर इन चारों पुत्रों को दीक्षा दिलायी और स्वयं ने भी दीक्षा ली। ये चारों साधु बहुश्रुत आचार्य हुए। इनके नाम से चार शाखाएँ निकलीं। वज्रसेनसूरिजी नौ वर्ष गृहवास में एक सौ सोलह वर्ष व्रत में और तीन वर्ष युगप्रधान पद में एवं एक सौ अट्ठाईस वर्ष की सर्वायु पूर्ण कर वीर निर्वाण से छह सौ बीस वर्ष बाद स्वर्ग गये। ____वज्रस्वामी और वज्रसेन के मध्य में आर्यरक्षित और दुर्बलिकापुष्प ये दो युगप्रधान हुए हैं। यशोभद्रसूरि से विस्तृत स्थविरावली, गण, शाखा और कुल तुंगीयायन आर्य यशोभद्रसूरि के दो शिष्य हुए- प्राचीन गोत्रीय भद्रबाहु और माढर गोत्रीय संभूतिविजय।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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