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________________ (10) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध पहले दीक्षा लेता है, वही बड़ा गिना जाता है। यदि पिता और पुत्र, राजा और प्रधान, सेठ और मुनीम तथा माता और पुत्री ये चारों एक साथ दीक्षा लें तो पिता, राजा, सेठ और माता ये चारों लोकरीति से बड़े माने जाते हैं तथा पुत्र, प्रधान, मुनीम और पुत्री ये चारों लघु माने जाते हैं। इसलिए बड़ी दीक्षा के योग्य यदि प्रधान और पुत्र हों तो राजा तथा पिता से पूछ कर बड़ी दीक्षा देते हैं। जिससे अप्रीति न हो। इस तरह यह अनियत कल्प है। 8. आठवाँ प्रतिक्रमण कल्प कहते हैं- आवश्यक का करना सो प्रतिक्रमण जानना। इसमें प्रथम और चरम जिन के समय में तो साधु को अतिचार दोष लगे या न लगे, तो भी दैवसिकादिक पाँचों प्रतिक्रमण करना आवश्यक है और बाईस तीर्थंकरों के साधु तो यदि पाप लगा है, ऐसा जानें तो ही दैवसिक अथवा रात्रिक प्रतिक्रमण शाम को अथवा सुबह करते हैं और पाप लगा है, ऐसा न जानें, तो नहीं भी करते। शेष पाक्षिक, चौमासी और सांवत्सरिक ये तीनों प्रतिक्रमण तो बाईस जिनेश्वरों के समय में होते ही नहीं है। इस तरह यह भी अनियत कल्प हैं। . 9. नौवाँ मासकल्प कहते हैं- प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के साधु एक गाँव में एक मास तक रहें, उपरान्त न रहें। चौमासे के चार महीनों तक एक गाँव में रहें; परन्तु अन्य दिनों में एक महीने से उपरान्त रहें तो अनेक दोषों का संभव होता है। जैसे कि गृहस्थ के साथ प्रीतिबंध होता है, लघुता प्राप्त होती है, लोकोपकार नहीं कर सकता, देश-विदेश की जानकारी नहीं होती तथा ज्ञान की आराधना नहीं होती। इसलिए एक मास से अधिक रहने की साधु को आज्ञा नहीं है। कदाचित् दुर्भिक्षादिक के कारण से रहना पड़े अथवा विहार करने में असमर्थ हो; तो उपाश्रय पलटे, मोहल्ला पलटे, घर पलटे और कछ भी न हो सके तो संथारा- भूमि पलट कर भाव से भी मासकल्प करे। इसीलिए तो लोक में भी कहा गया है कि स्त्री पीहर नर सासरे, संजमियां थिरवास। एतां होय अलखामणां, जो मांडे घरवास।।१।। और मध्य के बाईस तीर्थंकरों के साधु तो विहार करने में सामर्थ्यवान हों तो भी वे ऋजु और पंड़ित हैं; इसलिए उनके लिए मासकल्प का कोई
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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