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________________ (389) __ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध उसके पास बैठी। तो भी उसका रूप देख कर वह मुनि मुनिपद से डिग गया और भोग के लिए प्रार्थना करने लगा। तब वेश्या ने कहा कि धन के बिना तुम्हारी कामना सिद्ध नहीं होगी। साधु ने कहा कि धन कहाँ से लाऊँ? तब वेश्या ने कहा कि नेपाल देश का राजा साधुओं को रत्नकंबल देता है। वहाँ जा कर ले आओ। वह साधु भोग-विलास का मतलबी हुआ, इसलिए बरसात के दिनों में कीचड़ रौंदते-रौंदते नेपाल देश गया। वहाँ के राजा से रत्नकंबल प्राप्त कर वापस मुड़ा। रास्ते में चोरों का तोता बोला कि 'लक्षं याति।' चोरों ने तोते की बोली सुन कर साधु के पास से रत्नकंबल छीन लिया। तब पुनः राजा के पास जा कर उसने कहा कि कंबल तो चोरों ने लूट लिया। तब राजा ने बाँस की लकड़ी में रत्नकंबल रख कर उसे दिया। लौटते समय रास्ते में पुनः. तोता बोला कि 'लक्षं याति।' चोरों ने सुना, पर उन्हें कंबल दिखाई नहीं दिया, तो भी चोरों ने जाना कि हमारा तोता झूठ नहीं बोलेगा। इससे उन्होंने मुनि से कहा कि तुम्हारा कंबल हम नहीं लेंगे, पर सच कहो कि तुम्हारे पास कंबल है या नहीं? मुनि ने सत्य कहा। चोरों ने उन्हें छोड़ दिया। ___ मुनि ने रत्नकंबल ला कर वेश्या को दिया। वेश्या ने स्नान कर के * कंबल से शरीर पोंछ कर उसे मोरी में फेंक दिया। यह देख कर साधु बोला कि हे भोली! ऐसे अमूल्य रत्नकंबल को मोरी में क्यों फेंक दिया? तब वेश्या बोली कि अरे मूर्ख! तू भी क्या करता है? यह महादुर्लभ, इहलोक और परलोक में सुखकारी, रत्नकंबल से भी अत्यन्त अधिक मूल्यवान ऐसा जो चारित्ररूप रत्न है, उसे तू मलमूत्र से भरी हुई ऐसी मेरी कायारूप दुर्गंधित मोरी में फेंकने के लिए तैयार हुआ है, इसलिए तू मुझ से भी अधिक मूर्ख दीखता है। यह सुन कर प्रतिबोध प्राप्त कर वह साधु गुरु के पास आ कर पुनः चारित्र ले कर शुद्ध हुआ। एक दिन राजा का रथकार कोशा वेश्या को बहुत ही स्वरूपवती सन कर उस पर मोहित हुआ। उसके पास जाने की उसकी इच्छा हुई। राजा के
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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