________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (383) * उसने नगर में आ कर श्रीसंघ में मरकी के रोग का उपद्रव किया। इससे अनेक लोग मरने लगे। तब श्रीसंघ का संकट दूर करने के लिए गुरु ने महामहिमावन्त 'उवसग्गहर' स्तोत्र बनाया। वह स्तोत्र घर घर में गिना जाने लगा। इससे सब उपद्रव दूर हो गया। फिर श्रावकों के घर में यदि छोटा सा काम हो, तो भी वे 'उवसग्गहर' का पाठ करने लगे, इससे उनका काम पूरा हो जाता। ऐसा करते करते अन्त में लोगों में ऐसी प्रथा चल पड़ी कि यदि गाय दूध न दे, तो भी वे उवसग्गहर स्तोत्र का पाठ करते। इससे गाय दूध देने लगती। इसी प्रकार यदि कोई स्त्री कंडे (छाणे) बीनने जाती और टोकरा उसके सिर पर रखवाने वाला अन्य कोई न मिलता, तो वह भी उवसग्गहर का पाठ करती। इससे नागेन्द्र को आ कर टोकरा उठवाना पड़ता। इसी तरह कोई स्त्री रोटी करने बैठती और उसका पुत्र टट्टी जाता, तब वह भी उवसग्गहर का पाठ करती। इससे तुरन्त नागराज को वहाँ आ कर लड़के को शौच कराना पड़ता। . उवसग्गहर स्तोत्र से ऐसे ऐसे नीच काम लोग नागराज के द्वारा करवाने लगे। तब नागराज खीझ गया। उसने गुरु के पास आ कर विनती की कि हे महाराज! मैं संघ से एक क्षणमात्र भी दूर नहीं रह सकता। लोग तो पूर्वोक्त हलके हलके काम मुझसे करवाते हैं। तब गुरु ने जाना कि ये अभागे लोग यदि देव को खिझायेंगे, तो उल्टे अनर्थ हो जायेगा। इसलिए इस स्तोत्र को भंडारना (विसर्जित करना) ही योग्य है। फिर नागेन्द्र ने कहा कि आप इस स्तोत्र की छठी गाथा को भंडार दीजिये, शेष पाँच गाथा से ही मैं अपने स्थान पर रहते हुए सब उपद्रव दूर करूँगा। यह सुन कर गुरु ने छठी गाथा भंडार दी। श्री भद्रबाहुस्वामी के रचे हुए आवश्यकनियुक्ति प्रमुख अनेक ग्रंथ वर्तमान में विद्यमान हैं। . श्री भद्रबाहुस्वामी पैंतालीस वर्ष गृहस्थ पर्याय में, सतरह वर्ष व्रत पर्याय में और चौदह वर्ष युगप्रधान पद में एवं सर्वायु छिहत्तर वर्ष का भोग कर श्री महावीरस्वामी से एक सौ सत्तर वर्ष बाद देवलोक गये तथा दूसरे श्री संभूतिविजयजी जानना। वे बयालीस वर्ष गृहस्थ पर्याय में, चालीस वर्ष