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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (377) सहित पाँच सौ सत्ताईस जनों के साथ श्री जंबूस्वामी ने श्री सुधर्मस्वामी के पास दीक्षा ली। फिर द्वादशांगी का अध्ययन कर वे श्री सुधर्मस्वामी के पाट पर बैठे। उन्होंने केवलज्ञान भी प्राप्त किया। फिर अपने पाट पर प्रभवजी को बिठा कर स्वयं मोक्ष गये। ____ कवीश्वर कहते हैं कि- बनिये बहुत लोभी होते हैं, ऐसा लोग इसलिए कहते हैं कि जंबूस्वामी के हाथ में जो केवलज्ञानरूप धन आया, वह उन्होंने अन्य किसी को नहीं दिया। अंतिम केवलज्ञान उन्होंने ही पाया है। वे मोक्षनगर का दरवाजा बन्द कर बैठे, इसलिए लोभी कहलाये। जंबूकुमार जैसा भाग्यवान अन्य कोई नहीं हुआ और होगा भी नहीं। मोक्षरूपिणी स्त्री ने भी उनके साथ विवाह करने के बाद अन्य किसी के साथ विवाह नहीं किया। उनके जैसा कोई कोटवाल भी नहीं हुआ, क्योंकि उन्होंने पाँच सौ चोरों को साधु बना दिया। श्री जंबूस्वामी के मोक्षगमन के बाद दस वस्तुओं का विच्छेद हुआ। उनके नाम- एक मनःपर्यव ज्ञान, दूसरी परमावधि, तीसरी पुलाकलब्धि, चौथी आहारक शरीर, पाँचवी क्षपकश्रेणी, छठी उपशमश्रेणी, सातवीं जिनकल्पमार्ग, आठवीं परिहारविशुद्धि चारित्र, सूक्ष्म संपराय चारित्र और यथाख्यात चारित्र, नौवीं केवलज्ञान और दसवीं वस्तु मोक्षगमन। श्री जंबूस्वामी सोलह वर्ष गृहस्थावास में, बीस वर्ष व्रत-पर्याय में और चवालीस वर्ष केवल-पर्याय में एवं सर्वायु अस्सी वर्ष की भोग कर के श्री महावीरस्वामी से चौसठवें वर्ष में मोक्ष गये। 2. श्री प्रभवस्वामी का संक्षिप्त वृत्तान्त तीसरे पाट पर श्री प्रभवस्वामी कात्यायन गोत्रीय हुए। उन्होंने एक दिन अपने गच्छ में तथा श्रीसंघ में उपयोग दे कर विचार किया कि मैं किसे आचार्यपद अर्पण करूँ? उपयोग देने पर उन्हें गच्छ में तथा संघ में अपने पाट पर बैठने योग्य कोई पुरुष दिखायी नहीं दिया, तब अन्य मतों में उपयोग दिया। उसमें शय्यंभव भट्ट को देखा। फिर श्री प्रभवस्वामी ने दो
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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