________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (355) तापसों ने भगवान के पास आ कर पुनः दीक्षा ली। भरत महाराज प्रभु को वन्दन कर के पुनः अयोध्या लौटे और श्री ऋषभदेव प्रभु ने अनेक जीवों के कल्याण के लिए अन्यत्र विहार किया। भरत की षट्खंड विजय और सुन्दरी तथा अठानबे भाइयों की दीक्षा __भरतराजा ने अपने भवन में आ कर चक्ररत्न का अट्ठाई महोत्सव किया। फिर छह खंड पृथ्वी जीतने के लिए भरत महाराज सेना ले कर रवाना हुए। उनके आगे हजार देवताधिष्ठित चक्ररत्न चला। वह जितने योजन दूर जाता, उतने योजन तक सेना भी चलती। अनुक्रम से तमिस्रा गुफा के पास जा कर भरत ने डेरा डाला। वहाँ नित नयी रीति से और नयेनये वेश से भरत ने गंगादेवी के साथ विषयसुख भोगा। फिर गंगादेवी ने मार्ग दिया। तब तमिस्रा गुफा के मार्ग से आगे बढ़ कर म्लेच्छ देशों पर विजय प्राप्त की। इस तरह षटखंड जीत कर साठ हजार वर्ष के बाद भरतजी पुनः अयोध्या लौटे। नमि विद्याधर के घर नया स्त्रीरत्न उत्पन्न हुआ। उसके साथ भरतजी ने विवाह किया। सुन्दरी ने भी साठ हजार वर्ष तक आयंबिल तप किया। इससे वह दुर्बल हो गयी। जब भरतजी का आगमन हुआ, तब सुन्दरी ने उन्हें मोतियों से बधाया। सुन्दरी को दुर्बल देख कर भरतजी क्रोधित हुए। उन्होंने लोगों से पूछा कि तुम लोगों ने सन्दरी की सार-सम्हाल क्यों नहीं ली? तब लोगों ने कहा कि इसने आयंबिल तप किया है, जिससे यह दुर्बल हो गयी है। फिर भरतजी ने उसे संयम लेने की आज्ञा दी। इस तरह सुन्दरी भी दीक्षा ले कर साध्वी बनी। ___अब भरतजी अयोध्या में सुखपूर्वक रहने लगे। इतने में आयुधशाला के अधिष्ठायक पुरुष ने आ कर भरतजी से कहा कि हे स्वामिन्! चक्ररत्न आयुधशाला में प्रवेश नहीं कर रहा है। भरत के कारण पूछने पर अधिकारी ने बताया कि आपके भाई अभी तक आपकी आज्ञा में नहीं हैं, इसलिए चक्ररत्न आयुधशाला में प्रवेश नहीं कर रहा है। तब भरत ने अपने सब