________________ (342) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध बता कर विद्याधरों की सोलह जातियों की स्थापना की। दक्षिण श्रेणी का राज्य नमि और उत्तर श्रेणी का राज्य विनमि करने लगा। अन्तरायकर्म के उदय से प्रभु द्वारा किया गया वार्षिक तप पूर्वकृत अन्तराय कर्म के उदय से भगवान एक वर्ष तक निराहार रहे। उन्हें कहीं भी शुद्ध भिक्षा नहीं मिली। वे जहाँ गोचरी जाते, वहाँ उन्हें बड़ा आदमी जान कर कोई वस्त्र अर्पण करता, कोई अलंकार अर्पण करता, तो कोई मणि-माणिक और मुक्ताफल से भरे थाल आगे रखता। कोई कोई तो अपनी अत्यन्त रूपवती कन्या को सोलह श्रृंगार से सजा कर देने के लिए तैयार होता। इसी तरह कोई हाथी, घोड़ा, रथप्रमुख वाहन देने आता और कोई धन से भरा सुवर्णथालप्रमुख उचित वस्तु देने आता। इस तरह अनेकानेक पदार्थ ला कर लोग प्रभु के आगे रखते। प्रभु उन सबको अनावश्यक जान कर ग्रहण नहीं करते। पर अन्न देने के लिए कोई आगे नहीं आता था। इस तरह प्रभु एक वर्ष तक निराहार रहे, पर आहार के अभाव में वे जरा भी डिगे नहीं। उनमें कभी दीनता नहीं आयी। इस तरह विचरते हुए भगवान एक बार गजपुर नगर में पधारे। प्रभु के वार्षिक तप का पारणा और कर-संवाद . उस समय गजपुर नगर में बाहुबली का पुत्र सोमप्रभ राजा राज करता था। उसका पुत्र श्रेयांसकुमार युवराज था। श्रेयांसकुमार ने रात के समय सपना देखा कि मेरुपर्वत मलिन हो गया था। उसे मैंने अमृतघट से सींच कर उज्ज्वल (शोभायमान) कर दिया। श्रेयांसकुमार के पिता सोमप्रभ राजा को सपना आया कि किसी पुरुष को दुश्मन ने घेर लिया था। वह श्रेयांसकुमार की सहायता से विजयी हो कर मुक्त हुआ। उस नगर के सुबुद्धि सेठ को स्वप्न आया कि सूर्य की हजार किरणें नीचे गिर रही थीं, उन्हें श्रेयांसकुमार ने पुनः सूर्य में स्थापित किया। सुबह के समय ये तीनों राजसभा में मिले। तब सब ने अपने अपने स्वप्न की बात कही। तब सब के मन में यह विचार आया कि इन सपनों का सब फल श्रेयांसकुमार को मिलेगा और श्रेयांसकुमार