________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (305) जबरदस्ती नहीं करनी चाहिये, पर इन्हें विवाह तो अवश्य करना ही चाहिये। फिर सत्यभामा ने कहा कि इनके पास कोई सामर्थ्य नहीं है, क्योंकि स्त्री के साथ यदि विवाह करें, तो उसे पालने का काम बड़ा कठिन है। वह इनसे नहीं होगा। फिर भी यदि ये विवाह कर लें, तो सोलह हजार का इनके भाई पालन करते हैं, वैसे ही उसका भी पालन हो जायेगा। ऐसी बातें सुन कर नेमिनाथजी कुछ मुस्करा दिये। तब सब गोपियाँ ताली बजा बजा कर कहने लगी कि इन्होंने विवाह कबूल किया। इससे माता-पिता ने भी मान लिया कि पुत्र ने विवाह करना मंजूर किया है। फिर शिवादेवी के कहने से श्रीकृष्ण तथा समुद्रविजयजी प्रमुख राजाओं ने उग्रसेन राजा के घर जा कर राजीमती कन्या की माँग की। उग्रसेन ने भी प्रसन्न हो कर कहा कि सुखपूर्वक उनका विवाह कीजिये। फिर दोनों ओर विवाह का महोत्सव होने लगा। विवाह के लिए श्रृंगार किया जाने लगा, पर नेमजी विनयी थे, इसलिए माता-पिता का हर्ष भंग होने के भय से निःस्पृही होते हुए भी वे मौन धारण कर के रहे। अब जब बारात चली, उस समय अनेक यादवों के करोड़ों मनुष्य साथ चले। अनेक राजा लोग भी साथ चले। उस समय देव-देवियाँ आदि भी आकाश में चलने लगे। स्त्रियाँ गीत गाती हुईं साथ चलने लगीं। श्री नेमिनाथजी हाथी पर बैठे थे। उनके दोनों ओर चामर दुल रहे थे। बाजे बज रहे थे। इस तरह चलते चलते बारात उग्रसेन के महल के पास आयी। तब नेमजी ने सारथी से पूछा कि यह महल किसका है? सारथी ने उत्तर दिया कि यह आपके ससुरजी का महल है। __अन्य एक प्रत में नीचे मुजब लिखा हैप्रभु का श्रृंगार और उनकी बारात जब वसन्त मास का आगमन हुआ, तब बत्तीस हजार रानियों सहित श्रीकृष्ण वासुदेव श्री नेमिकुमार को साथ ले कर वसंतक्रीड़ा करने वन में गये। वहाँ सत्यभामादिक रानियों से नेमिकुमार को विवाह के लिए मनाने का कह कर श्रीकृष्ण अन्यत्र चले गये। फिर अनेक गोपियाँ मिल कर श्री नेमिकुमार पर केसर,