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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध ___ (283) ली है, यह कैसे हुआ? यह संदेह मिटाने के लिए अब यादवों की उत्पत्ति कहते हैं पूर्व में हरि और हरिणी इन दो युगलिकों से हरिवंशकुल प्रकट हुआ, यह बात दस अच्छेरों के अधिकार में संक्षेप में लिखी जा चुकी है। इसके बाद हरिराजा का पुत्र 'अश्व' हुआ। अश्व का पुत्र वसुराजा हुआ। उसके वंश में अनुक्रम से यदु राजा हुआ। यदु राजा से यादववंश प्रकट हुआ। यदु राजा का पुत्र शूर राजा हुआ। शूर राजा के शौरी और दूसरा सुवीर ये दो पुत्र हुए। शूर राजा ने अपने बड़े पुत्र शौरी को मथुरा का राज्य दे कर सुवीर को युवराज बनाया और स्वयं ने चारित्र ग्रहण किया। फिर शौरी राजा ने अपने छोटे भाई सुवीर को मथुरा का राज्य दे कर स्वयं कुशावर्त देश में जा कर अपने नाम से शौरीपुर नगर बसाया। वहाँ वह राज करने लगा। शौरी राजा के अंधकवृष्णि नामक पुत्र हुआ और सुवीर राजा के भोजकवृष्णि नामक पुत्र हुआ। भोजकवृष्णि के उग्रसेन नामक पुत्र हुआ। भोजकवृष्णि ने उग्रसेन को मथुरा का राज्य दे कर दीक्षा ग्रहण की। अंधकवृष्णि के दस पुत्र हुए। उनके नाम इस प्रकार हैं- एक समुद्रविज.., दूसरा अक्षोभ, तीसरा स्तमित, चौथा सागर, पाँचवाँ हिमवन्त, छठा अचल, सातवाँ धरण, आठवाँ पूरण, नौवाँ अभिचन्द्र और दसवाँ वसुदेव। ये दसों दशाह कहलाये। अंधकवृष्णि ने अपने बड़े पुत्र समुद्रविजय को शौरीपुर का राज्य दिया। अंधकवृष्णि के दो पुत्रियाँ थीं- कुन्ती और माद्री। उसने कुन्ती का विवाह पांडु राजा के साथ और माद्री का विवाह दमघोष राजा के साथ किया। ____ अब संक्षेप में पांडवों की उत्पत्ति कहते हैं- प्रथम श्री ऋषभदेवजी का पुत्र कुरु नामक हुआ। उसने कुरुदेश बसाया। उसके बाद उसके पाट पर असंख्य राजा हुए। उनमें से हस्ति नामक राजा ने हस्तिनागपुर बसाया। फिर बहुत काल बीतने पर सुभूम नामक चक्रवर्ती राजा हुआ। उसके बाद और भी अनेक राजा हुए। फिर एक शन्तनु नामक राजा हुआ। उसके दो स्त्रियाँ थीं। उनमें से एक विद्याधरपुत्री गंगा थी। उसके गांगेय नामक पुत्र हुआ। उसका दूसरा नाम भीष्म पितामह लोक में प्रसिद्ध हुआ। दूसरी सत्यवती नामक रानी थी। उसके दो पुत्र हुए। एक का नाम चित्रांगद और दूसरे का नाम विचित्रवीर्य था। शन्तनु राजा चित्रांगद को राज्य दे कर परलोकवासी हुआ। एक दिन चित्रांगद नीलांगद राजा के साथ युद्ध में मारा गया। तब विचित्रिवीर्य राजा हुआ। विचित्रवीर्य के तीन रानियाँ थीं- अंबिका, अंबालिका और अंबा।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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