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________________ (282) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध है, वहाँ से च्यव कर इस जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में शौरीपुर नगर के समुद्रविजय राजा की शिवादेवी भार्या की कोख में मध्यरात्रि के समय चित्रानक्षत्र में चन्द्रमा का योग होने पर गर्भरूप में उत्पन्न हुए। तब माता ने चौदह स्वप्न देखे इत्यादिक सब वर्णन श्री महावीरस्वामी के समान जानना। __उस काल में उस समय में श्री नेमिनाथ अरिहन्त वर्षाकाल का पहला महीना दूसरा पखवाड़ा याने श्रावण सुदि पंचमी के दिन नौ महीने साढ़े सात दिन गर्भ में पूर्ण होने पर यावत् चित्रानक्षत्र में चन्द्रमा का योग होने पर पुत्ररूप में जन्मे। यहाँ जन्म महोत्सवप्रमुख सब श्री महावीरस्वामी की तरह श्री नेमिनाथजी के नाम से कहना। ___माता-पिता ने उनका नाम अरिष्टनेमि रखा, क्योंकि भगवान की माता शिवादेवी ने पन्द्रहवें स्वप्न में अरिष्टरत्न का चक्र देखा था तथा लोगों के अरिष्ट चूर चूर हो गये, मिट गये, इसलिए अरिष्टनेमि नाम रखा। भगवान को उनके बचपन में इन्द्राणी आ कर खेलाती थी। जब प्रभु को भूख लगती, तब वे अंगूठा चूसते। उस अंगूठे में देव अमृतसंचार करते। भगवान माता का स्तनपान करते नहीं थे। - अनुक्रम से भगवान बढ़ने लगे। भगवान के शरीर का श्यामवर्ण था, फिर भी वे महास्वरूपवान थे। एक दिन भगवान पलने में खेल रहे थे, उस समय इन्द्र महाराज ने अपनी सभा में प्रभु के बल पराक्रम की प्रशंसा की। उस बात पर एक देव को विश्वास नहीं हुआ। उनसे राजमहल में आ कर भगवान को पालने में से उठा लिया। फिर वह उन्हें सवा लाख योजन दूर ले गया। तब भगवान ने यह कोई देवप्रयोग है, ऐसा जान कर अपना स्वल्प बल प्रकट किया। इससे वह देव नीचे आ गिरा। फिर इन्द्र महाराज ने अनुकंपा कर के उसे मुक्त किया। भगवान को पुनः पालने में रख कर स्तवना कर इन्द्र महाराज अपने स्थान पर गये। यादवों और पांडवों की उत्पत्ति श्री नेमीश्वर भगवान ने द्वारिका नगरी में दीक्षा ली। यह सुन कर श्रोता को यह आशंका होगी कि उनका जन्म शौरीपुर में हुआ है और उन्होंने दीक्षा द्वारिका में
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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