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________________ (270) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध चाहिये। यह सोच कर बहुत भोजनादि तैयार करा कर अपने साथ ले कर वह कमठ को खमाने गया। वहाँ जा कर उसके पाँव पड़ कर उसने अपने अपराध की क्षमायाचना की। फिर जब वह वापस मुड़ा, तब कमठ ने मरुभूति को पहचान कर अपना बैर याद कर के उसके सिर पर एक बडी शिला डाल दी। इससे मरुभूति की मृत्यु हो गयी। यह प्रथम भव जानना। ____ मरुभूति का जीव आर्तध्यान में मर कर दूसरे भव में विंध्याचल की अटवी में सुजातिक नामक हाथी हुआ। कमठ का जीव भी दुष्ट कर्म के जोर से पर्वत से उतरते समय फिसल पड़ा। इससे मर कर उसी विंध्याचल की भूमि में उड़ने वाला कूर्कट नामक सर्प हुआ। ___एक बार संध्या के समय अरविन्द राजा को आकाश में पंचरंगी बादल देख कर वैराग्य हुआ। उन्होंने दीक्षा ले कर ग्यारह अंगों का अभ्यास किया। फिर वे उग्रतप करते हुए एकाकी विचरने लगे। एक बार वे सागरचन्द्र नामक सार्थवाह के संघ के साथ अष्टापद और सम्मेतशिखर की यात्रा के लिए गये। वहाँ विंध्याचल के जंगल में एक सरोवर के किनारे संघ ने मुकाम किया। __इतने में मरुभूति का जीव जो हाथी हुआ था, वह अपनी हथिनियों के परिवारसहित सरोवर में जल पीने के लिए आया। उसने क्रोधित हो कर सर्व संघ को उपद्रव किया। इससे संघ के सब लोग भाग गये। फिर वह हाथी काउस्सग्ग में रहे हुए अरविन्द मुनि को मारने के लिए गया, पर मुनिके तपप्रभाव से वह स्तंभित हो गया। तब वह दूर खड़े खड़े मुनि को देखने लगा। मुनि को देखते हुए उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। तब पूर्वभव देख कर उसने मुनि को पहचाना। फिर सूंड लम्बी कर के वह मुनि के पाँव पड़ा। मुनि ने भी भव्य जीव जान कर उसे प्रतिबोध दिया। इससे उसे सम्यक्त्व प्राप्त हुआ। यह देख कर अन्य भी बहुत से लोग प्रतिबोध पाये। फिर हाथी ने श्रावक धर्म अंगीकार किया। श्रावक के बारह व्रतों की अभिलाषा करते हुए मुनि को नमस्कार कर के सरोवर में पानी पी कर वह अपने स्थान पर गया। मुनि भी वहाँ से विहार कर संघ के साथ यात्रा के
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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