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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (265) तीसरे भगवान के प्रशिष्य और श्री सुधर्मास्वामी के शिष्य श्री जम्बूस्वामी इन तीन पाट तक मोक्षमार्ग चला है। इसे युगान्तकृत् भूमि कहते हैं। दूसरी पर्यायान्तकृत् भूमि, वह भगवान श्री महावीरस्वामी को केवलज्ञान उत्पन्न होने के पश्चात् के काल के आश्रय से जानना। भगवान श्री महावीरस्वामी को केवलज्ञान उत्पन्न होने के पश्चात् चार वर्ष की केवल पर्याय होने के बाद अन्य किसी जीव के कर्म का अन्त हुआ याने कोई मुनि मोक्ष गया। इस तरह चार वर्ष बीतने के बाद मोक्षमार्ग का प्रवर्तन हुआ है। अन्य जीवों के कर्म का अन्त हुआ है। इसे पर्यायान्तकृत् भूमि कहते हैं। उस काल में उस समय में श्रमण भगवान श्री महावीरस्वामी तीस वर्ष गृहवास में रहे और कुछ महीने अधिक बारह वर्ष छद्मस्थ अवस्था में रहे तथा कुछ कम याने साढ़े छह महीने कम तीस वर्ष केवली अवस्था में विचरे। कुल बयालीस वर्ष तक चारित्रपर्याय में रह कर साधुता का पालन किया। कुल बहत्तर वर्ष का आयुष्य पाल कर वेदनीय कर्म, आयुकर्म, नामकर्म और गोत्रकर्म ये चार कर्म जो शेष रहे थे, इनका क्षय होने पर इसी अवसर्पिणी काल में दुःषम-सुषमा नामक चौथा आरा बहुत बीत गया और उस आरे के तीन वर्ष साढ़े आठ महीने शेष रहे तब, पावापुरी नगरी में हस्तिपाल राजा के कारकुन की सभा में स्वयं अकेले, पर साथ में अन्य कोई नहीं याने कि अन्य तीर्थंकर सब साधुओं के परिवार सहित मोक्ष गये हैं और श्री वीर भगवान तो अकेले ही बेला का तप याने पानी रहित चउविहार दो उपवास कर के पालथी मार कर बैठे हुए स्वातिनक्षत्र में चन्द्रमा का योग होने पर पिछली चार घड़ी रात शेष थी तब, पुण्यफल कहने वाले पचपन अध्ययन, पापफल कहने वाले पचपन अध्ययन तथा बिना पूछे छत्तीस अध्ययन कह कर अंतिम प्रधान नामक मरुदेवी का अध्ययन प्ररूपित करते हुए कालगत हुए। ऊँचे गये। जाति, जन्म, जरा, मरण का बन्धन काट कर सिद्ध हुए। वे बुद्ध हुए, मुक्त हुए और कर्मों का अन्त कर के सर्व सन्ताप रहित हुए। वे दुःख से अलग हो गये।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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